जब अयोध्या में जवानों ने गोली चलाने से किया इंकार, बाबरी गुंबद पर बंदरों ने पकड़ा भगवा ध्वज
तिथि देवोत्थान एकादशी, दिनांक 30 अक्टूबर 1990। दिन के करीब 3 बजे थे। अयोध्या हुई हमारी है, अब काशी की बारी है… जय श्रीराम… जयश्रीराम, हो गया काम… गूंजने लगा। अयोध्या का माहौल बदल गया। अचानक दुकाने खुलने लगी और मिठाइयां बंटने लगीं। आखिर क्या हुआ था उस दिन। आइए बताते हैं पत्रिका राम मंदिर कथा अभियान के 45वें अध्याय में।
पीएसी और स्थानीय पुलिस के हथियार जमा करा लिए गए। सारे जवानों और अधिकारियों के वर्दी पर लिखी नाम की पट्टियां हटा दी गई।
Ram Mandir Katha: कर्फ्यू हवा हो गया। यहां तक कि पुलिसकर्मी भी जयश्रीराम कहने लगे। ऐसा लगा जैसे श्रीराम वनवास खत्म कर अयोध्या लौटे हों। पूरी सड़कों, गलियों में जिधर देखों कारसेवक ही नजर आ रहे थे।
कारसेवक टीले पर चढ़कर पेड़ के सहारे बाबरी गुंबद पर चढ़ चुके थे। गुंबद पर भगवा झंडा लहरा दिया गया था। तभी आसमान में वायु सेना का हैलीकाप्टर मंडराने लगा। जमीन पर सेना फ्लैग मार्च करने लगी। जवानों को समझाया जाने लगा कि आप राममंदिर के विरोध में नहीं खड़े किए गए हैं। बल्कि न्यायालय का फैसला आने तक बाबरी ढांचे की सुरक्षा के लिए तैनात हैं। संविधान की रक्षा के लिए मर-मिटने की कसमें खाई जाने लगी।
केंद्रीय सुरक्षा बल, रेलवे सुरक्षा बल, सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय औद्यौगिक सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों में भारी आक्रोश था। आक्रोश इसलिए कि उनको लगता था कि कुछ खास किस्म के जवानों और अधिकारियों ने कारसेवकों को निशाना बनाकर गोलियां चलाई हैं। बाद में पीएसी और स्थानीय पुलिस के हथियार जमा करा लिए गए। सारे जवानों और अधिकारियों के वर्दी पर लिखी नाम की पट्टियां हटा दी गई। जिससे उनकी पहचान उजागर न हो।
IMAGE CREDIT: कारसेवक डटे थे। किसी कीमत पर अयोध्या से वापस नहीं जाना चाहते थे। मौके पर घटनाक्रम को कवर कर रहे पत्रकार गोपाल शर्मा के अनुसार अर्धसैनिक बल के कंपनियों के क्षेत्र बदल दिए गए। प्रधानमंत्री वीपी सिंह के खास समझे जाने वाले जिन अधिकारियों को श्रीराम जन्मभूमि पर 30 अक्टूबर 1990 के पहले से तैनात किया गया था। उन्हें हटा दिया गया।
मणिराम दास छावनी में पुलिस घुस भी नहीं पा रही थी 30 अक्टूबर,1990 की शाम से ही कारसेवकों को वापस लौटने के लिए मुलायम सरकार ने बस लगा दिया। उनसे अपील किया जाने लगा कि अब आप वापस लौट जाएं। अयोध्या से कारसेवकों को खदेड़ने के लिए कई राउंड हवा में फायरिंग की जाने लगी। लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे जाने लगे। मणिराम दास छावनी में हजारों की तादात में कारसेवक जमा थे। जहां पुलिस घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। कारसेवक डटे थे। किसी कीमत पर अयोध्या से वापस नहीं जाना चाहते थे।
गुंबद पर लहराता केसरिया झंडा कौन उतारे दिन में करीब एक बजे बाबरी गुंबद पर कारसेवकों ने केसरिया झंडा लहरा दिया था। गोली चल चुकी थी और जन्मभूमि का इलाका लगभग खाली कराया जा चुका था। अब सवाल था कि जन्मभूमि पर लहराता केसरिया झंडा कौन उतारे। पुलिस कर्मी खुद भी हनुमान चालिसा का पाठ करते थे।
उनकी अंतरात्मा इसे उतारने के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन सरकार का आदेश था जिसे मानना था। दो-तीन पुलिस कर्मी जैसे ही झंडा उतारने के लिए गुंबद पर चढ़ने लगे। तभी एक बंदर गुंबद पर पहुंच गया। वह झंडा पकड़कर बैठ गया। पुलिसकर्मी लाख कोशिश करें बंदर झंडा छोड़कर हटने को तैयार नहीं। देर रात तक बंदर झंडा पकड़े बैठा रहा। बाद में बड़ी मुश्किल से उसे मनाने के बाद पुलिसकर्मी झंडा उतारने में कामयाब हुए। साथ ही बाबरी ढांचे के टूटे हुए हिस्से को भी साफ किया गया।
IMAGE CREDIT: विवादित ढांचे का बाईं तरफ का हिस्सा जो रामकथा पार्क की तरफ बने मंच से देखा जा सकता था।
वायरलेस सेट पर हुई बातचीत का ब्यौरा जन्मभूमि के बगल की इमारत सीता रसोई की छत पर तैनात एक अधिकारी कहने लगे। मै पुलिस की नौकरी में पहले भी निलंबित हो चुका हूं। एकबार भगवान राम के लिए निलंबित हो जाऊंगा। लेकिन कारसेवकों पर गोली तो नहीं चलाऊंगा। यह सोचकर अयोध्या आया हूं।
यह जानकर आप हैरान होंगे कि सीआरपीएफ, सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने गोली चलाने से इंकार कर दिया था। वायरलैस से रिसीवर स्टेशन आपरेटर कंट्रोल रूम डीजीपी हेडक्वार्टर एलआरओ द्वारा महानिरीक्षक (सीआईडी) रामआसरे और फैजाबाद के पुलिस अधीक्षक सुभाष जोशी का वार्ता संख्या 1255 का विवरण-
महानिरीक्षक- वहां कैसी स्थिति है? पुलिस अधीक्षक- बहुत खराब है। ग्यारह साढे ग्यारह बजे डीएम साहब की मौजूदगी में भीड़ आ गई। बारह साढ़े बारह बजे तक अंदर घुसकर तोड़फोड़ की। जहां पर कीर्तन होता है, उसकी रेलिंग को निकाल दिया गया है। ऊपर चढ़कर तोड़फोड़ कर दी गई है।
महानिरीक्षक- वहीं पर? कहां पर? पुलिस अधीक्षक- वहीं पर सर, मस्जिद में। कमांडो और बीएसएफ को आर्डर दिया गया फायर के लिए लेकिन नाट ओके फायर। एडिशनल एसपी सिटी ने अपनी पिस्तौल से गोली चलाई। इस समय दो-तीन हजार की भीड़ पतली गली में है। जो लोग आ गए हैं, वे वापस जाने को तैयार नहीं है। मै खुद एक किलोमीटर तक इन सबको खदेड़ कर आया हूं। सीआरपीएफ के सीपी को लगाया और फायर के लिए कहा लेकिन उन्होंने आर्डर रिफ्यूज कर दिया। शांतिपूर्वक सीआरपीएफ ने जो पहले अच्छा काम किया था, इस समय कमांडो ने भी कुछ नहीं किया।
महानिरीक्षक- अच्छा अब आप वहां पर किसी को रहने न दें। चाहे तो गोली आदि जो उचित समझे, कर लें। किसी से आदेश लेने की आवश्यक्ता नहीं है। लाठी, गोली, टियर गैस जो भी हो, चाहे बंदूक चलानी पड़े तो चलाएं, सेफ एट आल कास्ट। आप डीजी टेक्निकल से बात करा दें, चाहे हाटलाईन या सेट द्वारा, आदमी एक भी नजदीक नहीं फटकना चाहिए। आपको किसी भी प्रकार मायूस होने की जरूरत नहीं है, ओवर।
कारसेवा से कारसेवा तक पुस्तक के लेखक गोपाल शर्मा राजस्थान पत्रिका के लिए बतौर संवाददाता मामले को कवर रहे थे। कारसेवा के बाद सबसे पहले लखनऊ लौटने वालों में से थे। वह लिखते हैं कि रास्ते भर ग्रामीण सड़कों पर खड़े रहे और जानना चाहते थे कि अयोध्या में कारसेवा हुई अथवा नहीं।
जैसे ही उनको बताया जाता कि कारसेवा हो चुकी है तो खुशी से नाचने और तालियां बजाने लगते। जयश्रीराम का नारा लगाते। दूसरी तरफ अस्पताल में भर्ती अशोक सिंघल (जो बाद में पुलिस को चकमा देकर अस्पताल से फरार हो गए थे।) के सिर में तीन टांके लगे थे। डाक्टरों ने बोलने से मना किया था लेकिन वह खुशी से बोल रहे थे कि प्रभु श्रीराम जी कृपा है, सब साफ हो गया। जारी रखेंगे।
कल की श्रीराम कथा में मुलायम सरकार द्वारा दूसरे दिन हुए गोलीकांड पर विस्तार से चर्चा जारी रखेंगे। आप इस कहानी से जुड़ी वीडियो भी यहां देख सकते हैं।
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