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इस दिवाली गोबर के दीयों से रोशन होगी अयोध्या, गणेश-लक्ष्मी भी होंगे गोबर निर्मित

– काशी में भी जलेंगे एक लाख दिए- 33 करोड़ देवी देवताओं के लिए जलेंगे 33 करोड़ दिए

अयोध्याOct 13, 2020 / 06:59 pm

Abhishek Gupta

Ayodhya news

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क.
अयोध्या. इस बार के दीपावली (Diwali) पर गाय के गोबर (Cowdung) से बनने वाले ईको-फ्रेंडली दिये से अयोध्या (Ayodhya News) रोशन होगी। भगवान श्रीराम की पावन जन्मस्थली अयोध्या में तीन लाख दीये प्रज्ज्वलित किए जाएंगे, तो वहीं काशी में भी एक लाख दीप प्रज्ज्वलन के कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग देश के 33 कोटि देवी देवताओं के नाम पर 33 करोड़ दिये जलाएगा। इसके लिए दिवाली के पहले गाय के गोबर से 33 करोड़ इको-फ्रेंडली दीयों के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, ताकि चीनी उत्पादों को टक्कर दी जा सके। दीपावली के लिए गोबर आधारित दीये, मोमबत्तियां, धूप, अगरबत्तियां, शुभ-लाभ, स्वास्तिक, समरानी, हार्ड बॉर्ड, वाल पीस, पेपर वेट, हवन सामग्री, भगवान गणेश एवं लक्ष्मी की प्रतिमाओं का भी निर्माण किया जा रहा है।
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देश में स्वदेशी मवेशियों के संरक्षण, संवर्धन और संरक्षण के लिए 2019 में स्थापित आयोग ने आगामी त्योहार के दौरान गोबर आधारित उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के चेयरमैन वल्लभाभाई कथिरिया के मुताबिक चीन निर्मित दीया को अस्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वदेशी संकल्पना और स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया जाएगा। दिया बनाने का काम शुरू हो गया है। दिवाली से पहले 33 करोड़ दीयों को बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
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गोबर आधारित उत्पाद में संभावनाएं
वर्तमान में भारत में प्रतिदिन लगभग 192 करोड़ किलो गोबर का उत्पादन होता है। गोबर आधारित उत्पादों में बड़ी संभावनाएं हैं। आयोग अध्यक्ष का कहना है कि हालांकि वह सीधे तौर पर गोबर आधारित उत्पादों के उत्पादन में शामिल नहीं है, लेकिन वह स्वयं सहायता समूहों और व्यवसाय स्थापित करने वाले उद्यमियों को प्रशिक्षण देने की सुविधा प्रदान कर रहा है। दीयों के अलावा, आयोग गोबर, मूत्र और दूध से बने अन्य उत्पाद जैसे एंटी-रेडिएशन चिप, गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों, अगरबत्ती, मोमबत्तियों और अन्य चीजों के उत्पादन को भी बढ़ावा दे रहे हैं। इस पहल से कोरोना महामारी के कारण वित्तीय मुसीबत झेल रहे गाय आश्रयों (गौशालाओं) को मदद मिलेगी, जो ग्रामीण भारत में नौकरी के अवसर पैदा करने के अलावा आत्मनिर्भरता का जरिया बनेगी।

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