अयोध्या में राममंदिर से जुड़े जमीन विवाद को लेकर अब संतों में दो फाड़ मौसम की मार से बेअसर लाल पत्थर बलुआ लाल पत्थर काशी और प्रयागराज के बीच में विंध्याचल पर्वत के बीच बसे मिर्जापुर की खदानों से निकलता है। मिर्जापुर के लाल पत्थर मौसम और समय दोनों की मार से बेअसर होते हैं। हवा और पानी से इनकी चमक और बढ़ जाती है। यह जितना पुराना होता जाता है, उतना ही चमकता है। सैकड़ों वर्षों तक पानी में पड़े रहने पर भी यही खराब नहीं होता। ऐसा इनमें मौजूद बलुआ कणों और उनके खास घनत्व की वजह से होता है। मिर्जापुर से लाल पत्थर की पहली खेप अयोध्या पहुंच चुकी है। अगले आठ महीनों में करीब 19 हजार पत्थर के टुकड़े यहां से भेजे जाएंगे।
लाल पत्थरों ने सारनाथ से नोएडा तक बिखेरी सुंदरता मिर्जापुर के पत्थरों से बनी मूर्तियों की बेहद डिमांड है। लाल पत्थरों से देश के कई प्रसिद्ध घाट, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का मुख्य भवन, सारनाथ का मुख्य बौद्ध मंदिर आदि बने हैं। थाई मंदिर में बनी कांधार शैली की दुनिया की सबसे बड़ी 80 फीट ऊंची प्रतिमा, सारनाथ के वियतनामी मंदिर की 70 फीट ऊंची पद्मासन मूर्ति, स्तूप, सारनाथ म्यूजियम के साथ मथुरा, वृंदावन के प्रसिद्ध मंदिरों सहित हजारों बौद्ध प्रतिमाओं, मूर्तियों और कलाकृतियों के निर्माण में मिर्जापुर के बलुआ पत्थरों का ही इस्तेमाल हुआ है। मायावती के शासन काल में लखनऊ से नोएडा तक लाल पत्थरों से सुंदरीकरण किया गया।
कठोर और मजबूत लाल पत्थर से बनेगी प्लींथ राम मंदिर निर्माण समिति ने एलएंडटी को पत्थर आपूर्ति की जिम्मेदारी दी है। कंपनी 13 सौ से 15 सौ क्यूबिक फिट (सीएफटी) की दर से चुनार से पत्थर खरीद रही है। मिर्जापुर के डीएम प्रवीण कुमार लक्षकार बताते हैं कि 27 बलुआ पत्थर की जो पहली खेप अयोध्या भेजी गयी है, उसमें 4 फीट लंबे, 2 फीट चौड़े और 2 फीट ऊंचे पत्थर शामिल हैं।
राजस्थान के पत्थर मजबूती में अव्वल राममंदिर की दीवारें राजस्थान के भरतपुर के रुदावल क्षेत्र के बंशी पहाड़पुर के पत्थर से बनेंगी। बंशी पहाड़पुर के पत्थर की उम्र कम से कम 5000 वर्ष होती है। बंशी पहाड़पुर के गुलाबी पत्थर पर भी पानी पडऩे से यह और ज्यादा निखरता है। हल्के गुलाबी रंग के इस पत्थर में कार्विंग आसान होती है। देश के अधिकतर मंदिरों के पत्थरों पर नक्काशी का काम गुलाबी पत्थरों पर ही किया गया है।
मंदिर निर्माण में 12 लाख घनफुट पत्थर की जरूरत मंदिर के लिए अब तक करीब 70 हजार क्यूबिक फुट पत्थर तराशा जा चुका है। वास्तुकार सोमपुरा का कहना है कि मंदिर के प्लींथ व परकोटा निर्माण में कम से कम चार लाख घनफुट पत्थर की जरूरत होगी। इस तरह राममंदिर निर्माण में लगभग 12 लाख घनफुट पत्थर लगेगा। पत्थरों को आपस में जोडऩे के लिए विशेष प्रकार के सीमेंट का प्रयोग हो रहा है। इंजीनियरों का कहना है कि मटेरियल में छह प्रतिशत सीमेंट का इस्तेमाल हो रहा है। इस तरह करीब 2.70 लाख सीमेंट बैग लगेगी। दो महीने में सभी 40 लेयर भर ली जाएंगी। अगस्त तक राममंदिर का प्रारंभिक ढांचा दिखने लगेगा।