जुहीखा गांव में बबूल की वादियों में बंजर हो चुकी जमीन पर किसान वीरेन्द्र सिंह जो कर दिखाया है, वह दूसरे लोगों के लिये मिसाल है। बंसाथ ही इसे कृषि अभियांत्रिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। बंजर जमीन पर सीमित संसाधन और प्रतिकूल जलवायु में एलोवेरा की फसल तैयार करना किसी चमत्कार से कम नहीं है। एलोवेरा की फसल को खून पसीने से सींचकर तैयार करने वाले वीरेन्द्र सिंह बताते हैं कि पुश्तैनी जमीन पर बिलायती कटीले बबूल से तंग आकर उन्होंने झाडियों को काटकर समतल खेत बनाया। इसके लिए उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई दांव पर लगा दी। बुलन्द हौसले वाले बीरेंद्र बताते हैं कि जब उन्होंने जंगल में एलोवेरा की बात घर में और ग्रामीणों से की, तो लोगों ने उन्हें BEWKUF बताते हुये न करने की सलाह दी। मगर इरादे के पक्के और बंजर पड़ी धरती में बीरेंद्र ने कुछ करने की ठान ली थी।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, वीरेंद्र सिंह द्वारा उगाई गई सात एकड़ रकबे की फसल एक वर्ष में तीन बार क्रॉप कटिंग कर बाजार में 20 लाख से अधिक की कीमत वसूल होगी।
डॉ. सिद्धार्थ से मिली प्रेरणाकिसान वीरेंद्र को डॉक्टर सिद्धार्थ शंकर ने जो जैव विविधता से परा स्नातक होने के साथ-साथ सियासी विरासत के मालिक ने उन्हें उनके
काम के लिये सराहा ही नहीं, बल्कि उनके काम को आर्थिक सहयोग भी किया। आज डॉक्टर के सहयोग से बीहड़ की बंजर भूमि में उम्मीद के अंकुर फुट पड़े हैं और जल्द ही एलोवेरा का यहां से निर्यात होगा। बंजर पड़ी भूमि में किसानों को ये बहुत बड़ा सन्देश है।