इधर, राहु के मुंह में अमृत की बूंद जा चुकी थी, लेकिन जब तक अमृत की बूंद राहु के गले से नीचे उतरती। पंक्ति बदलने और नियम तोड़ने से नाराज भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र की मदद से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। इससे राहु के शरीर के दो टुकड़े हो गए। राहु के सिर के हिस्से को राहु और धड़ को केतु कहा जाने लगा।
कथा के अनुसार राहु का सिर धड़ से अलग होने के बाद राहु के मुंह से उसका लार धरती पर आ गिरा। इससे लहसुन की उत्पत्ति हुई और उसका रंग सफेद हुआ। वहीं धड़ से केतु का खून धरती पर गिरा, इससे प्याज की उत्पत्ति हुई और इसका रंग लाल हुआ। चूंकि राहु के लार और केतु के रक्त से इनकी उत्पत्ति हुई, इसलिए इससे अजीबोगरीब गंध भी निकलती है। इसमें तामसिकता पैदा हुई और इनका सेवन करने से आवेग और आक्रोश बढ़ता है। इसी कारण इन्हें खाना अच्छा नहीं माना जाता। वहीं सिर कटने से अमृत की बूंद धरती पर आ गिरी, इसी से गिलोय की उत्पत्ति हुई।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की सबसे प्रभवाशाली औषधि है गिलोय
giloy kis kam aati hai: गिलोय के पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। इसे अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में इसे बुखार से राहत दिलाने वाली सबसे महत्वपूर्ण औषधि माना गया है। इसलिए इसे जीवंतिका कहाय गया है। गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतः कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। नीम, आम के पेड़ के आस-पास भी यह मिलती है। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं।इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है। इसका कांड छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा होता है। हालांकि बहुत पुरानी गिलोय में यह भुजा जैसा मोटा भी हो सकता है। इसमें से स्थान-स्थान पर जड़ें निकलकर नीचे की ओर झूलती रहती हैं। चट्टानों अथवा खेतों की मेड़ों पर जड़ें जमीन में घुसकर अन्य लताओं को जन्म देती हैं। गिलोय का उपयोग विभिन्न बीमारियों से लड़ने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में किया जाता है। इसलिए कोरोनाकाल में दुनिया भर में इस औषधि का जमकर प्रयोग किया गया था।