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संजीवनी बूटी से कम नहीं है यह लता, कोरोनाकाल में हुआ था जमकर उपयोग, जानें उत्पत्ति की पौराणिक कहानी

giloy ki bel ki utpatti kaise hui: हिंदू धर्म के अनुसार हर नई घटना का किसी पुरानी घटना से संबंध होता है। फिर इंसान का जन्म हो या पेड़ पौधा या जड़ी बूटी का, और हर घटना के कारण एक दूसरी घटना घटती है। आज जानते हैं ऐसी ही लता की उत्पत्ति की पौराणिक कहानी जो संजीवनी बूटी से कम नहीं है। कोरानाकाल में बुखार से राहत और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इसका जमकर प्रयोग हुआ था और इसका संबंध सागर मंथन से बताया जाता है ..

भोपालAug 13, 2024 / 01:01 pm

Pravin Pandey

giloy ki bel ki utpatti kaise hui

संजीवनी बूटी से कम नहीं है यह लता, कोरोनाकाल में हुआ था जमकर उपयोग

आइये जानते हैं गिलोय की उत्पत्ति की कथा

giloy ki utpatti kaise hui: पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला तो उसको पीने को लेकर देवताओं और असुरों में विवाद हो गया। इस बीच एक असुर इसे लेकर भाग गया, जिससे भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण कर वापस लाए। साथ ही इसे देवताओं और असुरों में बांटने के लिए दो पंक्तियों में बैठा दिया।
इसके बाद मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु जब अमृत बांटने लगे तब एक राक्षस राहु को आभास हुआ कि कहीं दानवों का नंबर आते-आते अमृत खत्म न हो जाए। इस पर राहु अपनी पंक्ति से उठकर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया। लेकिन राहु की इस हरकत को सूर्य और चंद्र ने पहचान लिया और उन्होंने भगवान विष्णु को इसका इशारा कर दिया।

इधर, राहु के मुंह में अमृत की बूंद जा चुकी थी, लेकिन जब तक अमृत की बूंद राहु के गले से नीचे उतरती। पंक्ति बदलने और नियम तोड़ने से नाराज भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र की मदद से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। इससे राहु के शरीर के दो टुकड़े हो गए। राहु के सिर के हिस्से को राहु और धड़ को केतु कहा जाने लगा।
guduchi ki utpatti

कथा के अनुसार राहु का सिर धड़ से अलग होने के बाद राहु के मुंह से उसका लार धरती पर आ गिरा। इससे लहसुन की उत्पत्ति हुई और उसका रंग सफेद हुआ। वहीं धड़ से केतु का खून धरती पर गिरा, इससे प्याज की उत्पत्ति हुई और इसका रंग लाल हुआ। चूंकि राहु के लार और केतु के रक्त से इनकी उत्पत्ति हुई, इसलिए इससे अजीबोगरीब गंध भी निकलती है। इसमें तामसिकता पैदा हुई और इनका सेवन करने से आवेग और आक्रोश बढ़ता है। इसी कारण इन्हें खाना अच्छा नहीं माना जाता। वहीं सिर कटने से अमृत की बूंद धरती पर आ गिरी, इसी से गिलोय की उत्पत्ति हुई।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की सबसे प्रभवाशाली औषधि है गिलोय

giloy kis kam aati hai: गिलोय के पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। इसे अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में इसे बुखार से राहत दिलाने वाली सबसे महत्वपूर्ण औषधि माना गया है। इसलिए इसे जीवंतिका कहाय गया है। गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतः कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। नीम, आम के पेड़ के आस-पास भी यह मिलती है। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं।

इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है। इसका कांड छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा होता है। हालांकि बहुत पुरानी गिलोय में यह भुजा जैसा मोटा भी हो सकता है। इसमें से स्थान-स्थान पर जड़ें निकलकर नीचे की ओर झूलती रहती हैं। चट्टानों अथवा खेतों की मेड़ों पर जड़ें जमीन में घुसकर अन्य लताओं को जन्म देती हैं। गिलोय का उपयोग विभिन्न बीमारियों से लड़ने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में किया जाता है। इसलिए कोरोनाकाल में दुनिया भर में इस औषधि का जमकर प्रयोग किया गया था।

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