अफगानिस्तान और तालिबान के बीच क्या कभी खत्म होगा संघर्ष?
नई दिल्ली। कतर में अफगानिस्तान और तालिबान की अहम बैठक शुरू हो गई है। इस बैठक में अफगानिस्तान सरकार की ओर से कई अधिकारी मौजूद होंगे। यह बैठक अहम मानी जा रही है। दोहा में सोमवार को तालिबान के साथ ‘शक्तिशाली अफगानों’ की वार्ता शुरू होने से अमरीका सहित कई देशों ने राहत की सांस ली है। उम्मीद की जा रही है कि दोनों पक्ष इस दौर की वार्ता में युद्ध विराम पर सहमत हो सकते हैं।इसमें तालिबान की ओर से भी कई अहम लोग शामिल होंगे। कतर की बैठक में अमरीकी प्रतिनिधि भी होंगेे।
गौतलब है कि बीते कई सालों से तालिबान और अफगानिस्तान के बीच शांति वार्ता जारी है। मगर हर बार ये किसी न किसी कारण से कामयाब नहीं हो पाती है। एक साल पहले युद्ध विराम के दौरान अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान लड़ाकों ने ईद का त्योहार मनाने के लिए अपने हथियार छोड़ दिए थे। इसके बाद से अब तक सारी शांति वार्ता की पहल नकाम रही है।
ब्रिटिश एयरवेज पर लगा 150 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड जुर्माना, डेटा सेंधमारी से जुड़ा है मामलाअफगान शांति-वार्ता 18 साल के अमरीका-तालिबान संघर्ष के बाद यह एक अहम पहल है। दोनों पक्षों के बीच बातचीत यूएस-तालिबान वार्ता के एक सप्ताह बाद हो रही है। अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने इस वार्ता के पहले ट्वीट किया कि अफगान शांति सभा लंबे समय के बाद एकत्र हो रही है। उन्होंने अपने ट्वीट में साथ आने के लिए अफगान सरकार, नागरिक समाज, महिलाओं और तालिबान की प्रशंसा की।
गले लगे और सेल्फ़ी ली जून 2018 में तीन दिन के लिए दोनों गुट एक दूसरे के करीब आए, गले लगे और सेल्फ़ी ली। इस घटना ने शांति समझौते की प्रक्रिया को शुरू करने में मदद की और अब ये काफ़ी आगे बढ़ चुकी है। विद्रोहियों से मिलने वालों में नानगरहर प्रांत के तत्कालीन गवर्नर हयातुल्ला हयात भी शामिल थे। हयात पर पहले कई हमले हो चुके हैं। इन हमलों में वे बाल-बाल बच गए, मगर उनके 50 सहयोगी मारे गए।
45,000 से अधिक सदस्य मारे जा चुके हयात का कहना है कि बीते पांच साल में इन संघर्षों में अफगान सुरक्षा बलों के 45,000 से अधिक सदस्य मारे जा चुके हैं। इस दौरान वह अपने कई दोस्तों को खो चुके हैं। ऐसे में बातचीत ही इस समस्या का एक मात्र हल है। अफगानिस्तान में तालिबान बीते 18 सालों से कहर बरपा रखा है। यहां के लोग दहशत में जीने को मजबूर हैं। हयात बताते है कि पिछले साल उनके साथियों की दर्जनों तालिबान लड़ाकों से मुलाकात हुई, जो उन्हें गले भी लगे थे।
कश्मीर पर यूएन रिपोर्ट: भारत ने दर्ज किया विरोध, कहा- यह आतंकवाद को बढ़ावा देने जैसासरकार के किसी नुमाइंदे से मिलने से इनकार हयात का कहना है कि अभी तक विद्रोहियों ने अफगान सरकार के किसी नुमाइंदे से मिलने से इनकार किया है क्योंकि वे उन्हें कठपुतली कह कर खारिज करते हैं। लेकिन इस बार वह पहली बार वह अफगान अधिकारियों से मुलाकात करेंगे और उन्हें उम्मीद है कि वह इस बार कुछ नए मुद्दों पर बातचीत करेंगे।
क्या चाहता है वाशिंगटन वाशिंगटन का कहना है कि वह सितंबर में होने वाले अफगान राष्ट्रपति चुनावों से पहले तालिबान के साथ एक राजनीतिक समझौते तक पहुंचना चाहता है। आपको बता दें कि जर्मनी और कतर द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय सभा में लगभग 70 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। जर्मन प्रतिनिधि मार्कस पोटज़ेल ने रविवार को सभा का उद्घाटन करते हुए कहा, “इतिहास याद रखेगा कि कौन से देश अपने मतभेदों को किनारे रख बात करने में सक्षम हैं।