सूत्रों के मुताबिक अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान दो बार सरकार गठन की असफल कोशिश कर चुका है। इस हफ्ते सरकार गठन का दावा किया जा रहा है, जिसके बाद पूरी टीम का ऐलान किया जाएगा। अफगानिस्तान में पाकिस्तान अपनी सेना की मजबूत उपस्थिति चाहता है। पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान की सेना का गठन फिर से हो। कहा यह भी जा रहा है कि पाकिस्तान ने इन्हीं शर्तों पर तालिबान की मदद की थी।
आईएसआई प्रमुख फैज हामिद ने अपनी काबुल यात्रा के दौरान अब तक हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के कुछ वरिष्ठ सदस्यों से मुलाकात की है। इसके अलावा फैज ने पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, अब्दुल्ला अब्दुल्ला और गुलबुद्दीन हिकमतयार से भी मुलाकात की है। पाकिस्तान की कोशिश है कि हामिद करजई और अब्दुल्ला को भी तालिबान सरकार में शामिल किया जाए। इससे वैश्विक स्तर पर तालिबान की सरकार को कुछ वैधता हासिल होगी।
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अफगानिस्तान में तालिबान सरकार गठन को लेकर पाकिस्तान ज्यादा उत्साह दिखा रहा है। वह चीजों में अपनी भूमिका साबित कर रहा है। पाकिस्तान की नीतियां पहले से ही अलग-अलग जिहादी समूहों को समर्थन देने की रही है। तालिबान भी उनमें से एक है। इसे भारत के साथ पाकिस्तान की दुश्मनी और बदले की कार्रवाई के नजरिए से देखा जाना चाहिए। पाकिस्तान के समर्थन से ये जिहादी समूह नियंत्रण से बाहर भी जा सकते हैं। खतरा यहां तक है कि जिहादी समूह खुद पाकिस्तान को पूरी तरह नियंत्रित कर वहां इस्लामिक स्टेट का गठन कर सकते हैं और यह बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
बताया जा रहा है कि फैज हामिद की काबुल यात्रा तीन मुद्दों पर केंद्रित है। इसमें पहला मुद्दा है- पाकिस्तान की देखरेख में अफगानिस्तान की नई सेना का गठन किया जाए। दूसरा मुद्दा- अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और सीईओ अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मुलाकात कर उन्हें नई तालिबान सरकार में शामिल किया जाए और अहम पद दिए जाएं। इसके अलावा तीसरा मुद्दा है- तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच चल रहे मतभेद दूर किए जाएं।
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विश्लेषकों की मानें तो हक्कानी नेटवर्क को संयुक्त राष्ट्र और अमरीका ने आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है, लेकिन यह संगठन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की देखरेख में बढ़ रहा है और आईएसआई को हक्कानी नेटवर्क के संरक्षक के तौर पर भी जाना जाता है।