तेहरान। आतंकी संगठन तालिबान दोबारा से अफगानिस्तान सरकार पर हावी होता नजर आ रहा है। हालात ये हो चुके हैं कि अफगान सेना में विद्रोह फैल सकता है। सेना के जवानों का मनोबल लगातार टूट रहा है। इसका फायदा तालिबान को मिल रहा है। सरकार दबाव में आकर बातचीत को तैयार है। मगर तालिबान अपनी शर्तों पर वार्ता करना चाहता है। गौरतलब है कि तालिबान ने ‘अल फतह’ अभियान चलाकर सेना के बीच खौफ का माहौल बना रहा है। उसने सेना के जवानों को खुले तौर पर धमकी दी है कि या तो वह उनकी तरफ से आकर लड़ें या अपनी मौत के लिए तैयार रहें। तालिबानी लड़ाके मिशन के तहत सेना के जवानों का कत्लेआम कर रहे हैं। उन्हें आदेश मिले हैं कि जवानों पर किसी परिस्थिति में हमला करा जाए। उन पर बिल्कुल भी दया न की जाए। एक आंकड़े के मुताबिक बीते तीन माह में अब तक 540 सैनिकों की मौत हो चुकी है। वहीं अप्रैल माह में करीब 97 सैनिकों की मौत हो चुकी है। इस लड़ाई में आम नागरिकों का जीना मुहाल हैं। संघर्ष में अब तक 350 नागरिकों की मौत हो चुकी है।
अमरीका: जो बिडेन लड़ेंगे 2020 का राष्ट्रपति चुनाव, सोशल मीडिया के जरिए की घोषणातालिबान ने वार्ता तोड़ी तालिबान के बढ़ते कद को लेकर अफगान सरकार चिंतित है।इन परिस्थितियों में सरकार के पास एकमात्र विकल्प बातचीत ही है। बीते सप्ताह अफगान सरकार ने दोहा में तालिबान के प्रतिनिधियों से वार्ता का प्रस्ताव रखा था। इसके लिए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के प्रशासन ने करीब 250 लोगों की सूची का ऐलान किया था। इसमें सरकार समेत अफगानिस्तान के हर क्षेत्र के लोगों को शामिल किया गया। इतने भारी-भरकम प्रतिनिधिमंडल पर तालिबान ने तंज कसते हुए कहा कि यह सामान्य सूची नहीं है। उनकी इतने लोगों से मिलने की योजना नहीं थी। इसके कारण वार्ता रद्द हो गई। अफगानिस्तान ने वार्ता के पटरी से उतरने के लिए कतर सरकार को जिम्मेदार ठहराया।
नेपाल: चार साल पहले आए भूकंप ने हिला दी थी देश की नींव, पुनर्निर्माण कार्य आज भी जारीअफगानिस्तान में 14 हजार अमरीकी सैनिक तालिबान से युद्ध में अफगान सेना के साथ अमरीकी सैनिक भी शामिल हैं। वह पीछे से अफगान सेना का सपोर्ट कर रही है। करीब 14000 अमरीकी सैनिक अफगानिस्तान में मौजूद हैं। अमरीकी सेना अफगान सेना को ट्रेनिंग देने के साथ हथियार मुहैया करा रही है। मगर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि वह अगले साल तक अफगान से आधे अमरीकी सैनिक निकाल लेंगे। यानि सात हजार सैनिक साल भर में वापस अपने देश चले जाएंगे। ऐसे में अफगान सेना के लिए लड़ना मुश्किल हो जाएगा।
Sri Lanka Blasts: सीरियल ब्लास्ट के बाद श्रीलंका प्रशासन में उथल-पुथल, रक्षा सचिव ने दिया इस्तीफासीधे सोवियत सेना से टक्कर नहीं लेना चाहती थी पाक सेना अफगानिस्तान में युद्ध की शुरुआत सन 1978 में उस वक्त हुई जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमले करना शुरू कर दिया था। सोवियत संघ की सेना ने अफगानिस्तान के कई इलाकों पर कब्जा जमाया। इसके बाद अमरीका ने अफगानिस्तान से सोवियत संघ को भगाने के लिए पाकिस्तान को मोहरा बनाया। लेकिन पाकिस्तान सरकार सीधे सोवियत सेना से टक्कर नहीं लेना चाहती थी। उसने तालिबान नामक एक संगठन का गठन किया। इसमें पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को जेहादी शिक्षा देकर भर्ती किया गया।
अमरीका ने वित्तीय मदद और हथियार मुहैया करवाए अमरीका ने इन्हें वित्तीय मदद दी और हथियार मुहैया कराया। वहीं चीन की सेना से इन्हें ट्रेनिंग दिलवाई गई। तालिबान की मदद को अरब के कई अमीर देश जैसे सऊदी अरब, इराक आदि ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पैसे और मुजाहिदीन मुहैया कराए। इस्लामिक देशों में प्रचार किया गया कि सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर नहीं बल्कि इस्लाम पर हमला किया है। लिहाजा कई देश सोवियत संघ के खिलाफ इस जंग में शामिल होने पर भी राजी हो गए। आखिर में तालिबान की बढ़ती ताकत के आगे रूस ने घुटने टेक दिए। अमरीका के दम पर सोवियत संघ को हराने वाले तालिबान ने धीरे-धीरे अफगानिस्तान में अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए।
अफगानिस्तान में तालिबान ने विकराल रूप हासिल कर लिया और वहां पर सोवियत संघ की करारी हार हुई। सोवियत संघ ने सेना को वापस बुलाने का फैसला लिया। यह फैसला जहां सोवियत संघ के लिए काफी घातक साबित हुआ है वहीं अफगानिस्तान समेत पूरे क्षेत्र के लिए भी हानिकारक था। अमरीका के दम पर सोवियत संघ को हराने वाले तालिबान ने धीरे-धीरे अफगानिस्तान में अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए। उसने पूरे देश में अपना दबदबा बना लिया।
अमरीकी सीमा पर दिखा दिल को छू लेने वाला नजारा, भटकता मिला 3 साल का बच्चायुद्ध के चलते अफगानिस्तान में सरकार गिर गई युद्ध के चलते अफगानिस्तान में सरकार गिर गई थी जिसके कारण दोबारा चुनाव कराए जाने थे। लेकिन तालिबान ने देश कि सत्ता अपने हाथों में लेते हुए पूरे देश में एक इस्लामी धार्मिक कानून शरीयत लागू कर दिया जिसे सऊदी सरकार ने समर्थन भी दिया। 80 के दशक के अंत में कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरु हो गया था। मुजाहिद्दीनों से भी लोग परेशान थे। जब तालिबान का उदय हो रहा था तब अफगान के लोगों ने भी उसका स्वागत किया। इस दौरान आतंकी संगठन ने कड़े कानूनों से सत्ता को निय़ंत्रित करना शुरू कर दिया। महिलाओं पर बच्चों पर खूब अत्याचार किए गए। यहीं से ओसाम बिन लादेन, मुल्ला उमर आदि कई आतंकवादियों का उदय हुआ और आज अमरीका के साथ अफगान सेना इन्हें हराने के लिए युद्ध लड़ रही हैं। अमरीका अपने बनाए आतंकी संगठन से पार पाने में लगा हुआ है।