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अमरीका के इस कदम को तालिबान के साथ जुड़ने की तरह देखा जा रहा है। अमरीका काबुल में दूतावास खोलने की जल्दी में नहीं है, क्योंकि इसे तालिबान शासन को मान्यता देने जैसा हो सकता है। यही कारण है कि अमरीका ने बीच का रास्ता निकाला है। यह समझौता ऐसे वक्त में हुआ है जब अमरीका और अन्य पश्चिमी देश इस बात से जूझ रहे हैं कि काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद कट्टरपंथियों के साथ कैसे जुड़ना है।
अफगानिस्तान मसले पर अमरीकी डिप्लोमैट थॉमस वेस्ट ने 11 नवंबर को इस्लामाबाद में तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी के साथ पाकिस्तान, रूस और चीन के प्रतिनिधियों से मुलाकात की है। बता दें कि पाकिस्तान और चीन जैसे देश अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद से तालिबान को कई तरह से सहयोग कर रहे हैं।
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कतर के विदेश मंत्री अल थानी ने कहा है कि अफगानिस्तान को मदद की सख्त जरूरत है। खासकर तब जब सर्दी आ रही है। अफगानिस्तान को छोड़ना एक बड़ी गलती होगी। एक अमरीकी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि कांसुलर सहायता में पासपोर्ट आवेदन स्वीकार करना, नोटरी सेवाएं प्रदान करना, सूचना प्रदान करना और इमरजेंसी हालात में में मदद करना शामिल हो सकता है।