अंबिकापुर के गुदरी चौक निवासी 68 वर्षीय श्रवण शर्मा पिता स्व. रामआशीष शर्मा का रुझान बचपन से ही चित्रकारी में था। पत्रिका से बातचीत के दौरान श्रवण शर्मा ने बताया कि बचपन में वे घर की दीवारों पर कोयले से आकृति बनाते रहते थे, इसके लिए उन्हें मां की डांट भी पड़ती थी।
स्कूल के ब्लैकबोर्ड से लेकर खेल मैदान तक वे आकृति उकेरा करते थे। पिता ने उनके हुनर को पहचाना और प्रोत्साहित किया। श्रवण शर्मा ने बताया कि 10 वर्षी की उम्र में उन्होंने पहली बार अपनी मां की साड़ी पर चित्र बनाया था, जिसकी काफी प्रशंसा हुई थी।
उन्होंने बताया कि 1968 में उनकी मुलाकात फादर बिंज व फादर कामिल बुल्के से हुई। दोनों उन्हें विश्व के महान चित्रकारों के प्रिंट दिया करते थे जिसे वे हूबहू बना देते थे। इस अभ्यास से उन्हें रंग समन्वय का अच्छा ज्ञान मिला।
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समाज की चकाचौंध से हैं दूरश्रवण शर्मा (Shrawan Sharma) की कलाकृतियों ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। उन्होंने आदिवासी संस्कृति एवं जनजातियों के जीवन परिवेश के आंतरिक रूपों का अंतरंग चित्रण किया है। उनके चित्र में प्रकृति एवं मानवीय जीवन का अनुपम संगम देखने को मिलता है। उनकी चित्रकारी बोलती प्रतीत होती है।
बड़े मंचों पर सम्मान व ख्याति मिलने के बाद भी श्रवण आज समाज की चकाचौंध से दूर साइकिल पर चलते है। स्वभाव से अत्यंत सरल व सहज श्रवण उम्र की इस पड़ाव में अभी भी अपनी कलाकृति में रमे हुए हैं। इसके पूर्व भी करीब एक दर्जन बार इनका नाम पद्मश्री अवार्ड के लिए भेजा जा चुका है।