सरगुजा रेल सुविधाओं के दृष्टिकोण में अब तक काफी उपेक्षित व पिछड़ा ही रहा है। वर्षों की संघर्ष का परिणाम बस इतना है कि ट्रेन सुविधा के नाम पर सरगुजा की दौड़ राजधानी रायपुर व जबलपुर तक ही सीमित होकर रह गई है। बताने को अंबिकापुर-दुर्ग एक्सप्रेस, एक मेमू ट्रेन व अंबिकापुर-जबलपुर एक्सप्रेस ही है, इसके अलावा सबसे बड़ी मांग अंबिकापुर-बरवाडीह रेल लाइन उपेक्षा का शिकार हो गई है।
अंबिकापुर-बरवाडीह 182 किलोमीटर रेल लाइन के संघर्ष की कहानी
1. वर्ष 1935-36 में जबलपुर-रांची को जोड़ देने की योजना ब्रिटिश सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों से बनाई थी और तब 400 किलोमीटर की दूरी मुंबई-कोलकाता के बची कम हो जाने का आकलन किया गया था।
2. प्रारंभ में बरवाडीह से कुटकू, भंडरिया, बरगढ़ होते हुए बलरामपुर के सरनाडीह तक प्राथमिक स्तर पर काम प्रारंभ कर दिया गया था। बरगढ़ से भंडरिया, कुटकू तक रेल पातें बिछाई गईं थी, पुलों के खंभे बनाए जा रहे थे, स्टेशनों में क्वाटर्स आदि काम प्रारंभ कर दिए गए थे, लेकिन 1946 में एकाएक काम बंद कर दिया गया
3. 1960 में रेलमंत्री जगजीवन राम अंबिकापुर आए तो पुरजोर मांग उठी, इसके फलस्वरूप चिरमिरी की ओर से करंजी-बिश्रामपुर तक, चिरमिरी-बरवाडीह लाइन का काम 1960 से 1962 तक किया गया
4. वर्ष 2006 में एक लंबे जनसंघर्ष के परिणामस्वरूप बिश्रामपुर से रेल लाइन का विस्तार अंबिकापुर तक किया गया।
5. वर्ष 2013 में पहली बार अंबिकापुर-बरवाडीह 182 किलोमीटर रेल लाइन की स्वीकृति केंद्र की मनमोहन सिंह की सरकार ने सैद्धांतिक रूप से दी और एक रुपए टोकन मनी के रूप में दिया।
6. वर्ष 2015 में मोदी सरकार में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अंबिकापुर-बरवाडीह रेल लाइन की पुन: स्वीकृति देते हुए टोकन मनी के रूप में केवल 5 करोड़ रुपए दिए
7. फरवरी 2016 में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की उपस्थिति में रेल मंत्रालय व राज्य सरकार के अधिकारियों के मध्य समझौता ज्ञापन(एमओयू) साइन किया गया।
नवंबर 2017 में परामर्शी ठेका किया गया है आबंटित, अटकी परियोजना
अंबिकापुर-बरवाडीह रेल लाइन को लेकर दिसंबर 2017 में राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम को राज्यसभा में रेल मंत्री पीयुष गोयल ने बताया था कि लिए छत्तीसगढ़ रेल निगम लिमिटेड ने इस परियोजना को संभावित परियोजना में चिन्हित किया है।
जनप्रतिनिधियों से है काफी उम्मीदें
बरवाडीह रेल लाइन को लेकर 60-70 साल के लंबे संघर्ष के बावजूद अभी तक कुछ हासिल न होने से लोग काफी हताश हैं। हर बार की तरह उन्हें रेल बजट में इस परियोजना के लिए सरगुजा के जनप्रतिनिधियों से ही उम्मीदें हैं। उन्हें भरोसा है कि अगर बात दिल्ली तक सही ढंग से पहुंचाई जाए तो बजट में कुछ अच्छा हो सकता है।
सरगुजा में अगर लंबी दूरी की ट्रेनों की सुविधा चाहिए तो इसके लिए सबसे पहले अंबिकापुर रेलवे स्टेशन पर टर्मिनल बनाने की जरूरत है। तभी यहां लंबी दूरी की ट्रेनों की सौगात मिल सकती है। जब भी रेलवे के अधिकारियों के समक्ष ट्रेनों की मांग उठती है तो उनका साफ कहना रहता है कि पहले टर्मिनल तो बन जाए, तब ट्रेनों की सुविधा पर बात होगी। यही वजह है कि अंबिकापुर से दिल्ली तक ट्रेन जैसी मांगें बिना टर्मिनल के पूरा होना असंभव है। साथ ही अंबिकापुर स्टेशन में एक और प्लेटफार्म बनाए जाने की जरूरत है।
अंबिकापुर से रायपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस भी बड़ी मांग
सरगुजावासियों की एक और बड़ी मांग अंबिकापुर से रायपुर तक इंटरसिटी एक्सप्रेस पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई है। इस ट्रेन के लिए अंबिकापुर स्टेशन में कुछ अलग से करने की जरूरत नहीं है। वर्तमान सुविधा में ही यह ट्रेन आसानी से चलाई जा सकती है, लेकिन लगातार रेल बजटों में इस मांग की भी उपेक्षा होती रही है। इसके अलावा लोगोंं की मांग है कि अंबिकापुर-जबलपुर एक्सप्रेस का नाम अंबिकापुर भोपाल व्हाया जबलपुर कर दिया जाए।
अब तक सिर्फ ये ट्रेनें सरगुजा के हिस्से
अंबिकापुर-दुर्ग एक्सप्रेस
अंबिकापुर-जबलपुर एक्सप्रेस
अंबिकापुर-अनूपपुर-मनेंद्रगढ़
मेमू ट्रेन, अंबिकापुर से अनुपूपुर सबसे पहले टर्मिनल की आवश्यकता
सबसे पहले टर्मिनल की आवश्यकता है, इसके अलावा एक और प्लेटफार्म बनाया जाए। अंबिकापुर-बरवाडीह रेल लाइन को सरकार गंभीरता से ले, इस रेल बजट में राशि की घोषणा करे। बरवाडीह रेल लाइन को लेकर अब तक सरगुजा सिर्फ छलते आया है। चिरमिरी से नागपुर हॉल्ट के लिए स्वीकृति तो हो गई है, इसका काम तत्काल शुरू किया जाए।
वेदप्रकाश अग्रवाल, सरगुजा रेलवे संघर्ष समिति