इतिहास के जानकारों का कहना है कि नदी पर पुल निर्माण में बड़ी बाधा तमसा नदी का वेग था। पानी का बहाव इतना तेज था कि उसमें कुछ भी रुक नहीं रहा था। कहा जाता है कि कुछ ही दूरी पर नाथू गोड नाम का व्यक्ति नदी में मछली पकड़ रहा था। वह देख रहा था लाख प्रयास के बावजूद मुगल सैनिक असफल होते जा रहे थे। देखकर गोड वहां पहुंचा और कहा कि तमसा नदी पर पुल के लिए बलि देना जरूरी है। इसके बाद नाथू गोड की बलि दे दी गई, जिसके बाद यह पुल बनकर तैयार हो सका।
अंबेडकरनगर में अकबर जहां रुका हुआ था, इबादत के लिए उसने मस्जिद बनवाई थी, जो आज शाही पुल वाली मस्जिद के नाम से जानी जाती है। आजादी के बाद पुरातत्व विभाग ने इस मस्जिद को अपने संरक्षण में ले लिया है। मस्जिद के मुख्य दरवाजे के अगल-बगल में दो शिलालेख हैं, जिन पर फारसी भाषा में लिखा हुआ है। अंबेडकरनगर लखनऊ से 185 किमी दूर पूरब दिशा में स्थित है। यहां आने के लिए सड़क मार्ग के अलावा रेल यातायात की भी सुविधा उपलब्ध है।
पिलुआ मंदिर में लेटे हुए हैं हनुमान, लेते हैं सांस, आज तक कोई नहीं भर नहीं पाया इनका पेट
– देश का इकलौता मंदिर जहां बिना भगवान श्रीराम के विराजमान हैं मां जानकी
– इसलिए पूरी दुनिया में क्यों खास है अपना लखनऊ और यहां की तहजीब – देवा शरीफ जहां मुसलमान भी खेलते हैं होली और जलाते हैं दिवाली के दीये