सिकुड़ गया झील का रकबा, बहाव क्षेत्र अतिक्रमण की जद में : सिलीसेढ़ झील का निर्माण वर्ष 1845 में कराया गया था। शुरू में इस झील का रकबा करीब 10 किमी बताया जाता है लेकिन अब धीरे-धीरे सिकुड़कर सात से आठ किमी रह गया। यानी मानसूनी बारिश कम होने के कारण पानी की आवक कम हुई और बहाव क्षेत्र सिकुड़ गया। इसी का फायदा भूमाफियाओं ने उठाया। उन्होंने धीरे-धीरे बहाव क्षेत्र पर अपने कब्जे शुरू कर दिए। सिलीसेढ़ तिराहे से लेकर आखिर मोड़ तक ये बहाव क्षेत्र है लेकिन इस समय यहां दुकानें, रेस्टोरेंट, छोटे होटल आदि संचालित हैं। कुछ घर भी बन गए हैं। बताते हैं कि इनकी संख्या दर्जनों में है। इनको नेताओं से लेकर अफसरों का पूरा संरक्षण मिला हुआ है।
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सब कुछ पता पर अफसर आंखें मूंदे हुए
हैरत की बात ये है कि यूआईटी को पूर्व में भी सब कुछ पता था कि ये बहाव क्षेत्र है। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन नहीं हो रहा, बावजूद इसके कार्रवाई नहीं की जबकि छोटे-छोटे अतिक्रमण हटाकर यूआईटी ने कागजों को पेट भर दिया। बताते हैं कि पूर्व में तमाम लोगों ने शिकायतें भी दर्ज कराई थीं लेकिन ये ठंडे बस्ते में चली गईं। वहीं के रहने वाले विकास शर्मा, राहुल सिंह आदि का कहना है कि यूआईटी भले ही शहर के चारों ओर बुलडोजर चला रही हो लेकिन यहां सिलीसेढ़ को उसका सम्मान नहीं दिला पाई। उसकी जमीन पर कब्जे हो गए। ये हटाए जाएं तो नजारा खूबसूरत हो।
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टीम भेजकर सर्वे कराएंगे: सिलीसेढ़ झील के बहाव क्षेत्र में यदि अतिक्रमण हुआ है तो उसका टीम भेजकर सर्वे कराएंगे। साथ ही नियमानुसार आगे की कार्रवाई भी होगी।— अशोक कुमार योगी, सचिव, यूआईटी