उपखंड मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर दूर देवी धौलागढ़ के इतिहास को लेकर कई किवदंती मशहूर है। लेकिन इनमें सबसे अधिक प्रचलित किवदंती लाखा बंजारे नाम के व्यापारी ने माता की मूर्ति उस समय छोटे से कमरे में स्थापित करवाई थी, जब मुद्रा के रूप में कोडियो का चलन था। प्रतिष्ठा आचार्य कपिल शास्त्री बताते हैं कि समय के साथ साथ धीरे-धीरे मंदिर का विस्तार होने लगा और मंदिर के विस्तार में मथुरा के सेठ और माता के परम भक्त स्व. रामचंद्र खंडेलवाल के परिवार का विशेष स्थान रहा है। रामचंद्र खंडेलवाल ने 1979 से 1985 के बीच में मंदिर में कई कमरों का निर्माण, हनुमानजी के मंदिर का निर्माण मंदिर में चढ़ने के लिए सीढियां बनवाई।
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सीढ़ियां बनने से पूर्व पत्थरों पर श्रद्धालु मंदिर में देवी के दर्शन करने जाते थे और उस समय यहां मानवीय दखल बहुत कम था। चारों तरफ जंगल ही जंगल था और श्रद्धालु लाखा बंजारा के समय से ही बनी बावड़ी के पास पेड़ों के नीचे आराम किया करते थे। इसके अलावा इस परिवार ने स्थानीय स्कूल में भी कई कमरे बनवाए। किन्हीं कारणों से 1982 में माता की मूर्ति खंडित हो गई थी, इसका निर्माण भी स्व. रामचंद्र खंडेलवाल ने कराया।
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बाद में 1995 में माता की मूर्ति खंडित होने के बाद उनके पुत्र राजेंद्र खंडेलवाल ने मूर्ति की नवीन मूर्ति की फिर से प्राण प्रतिष्ठा कराई। हालांकि मंदिर में अटूट विकास कार्य कराने वाले पिता एवं पुत्र इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन उनकी इस परंपरा का निर्माण अब रामचंद्र खंडेलवाल के पौते अतुल खंडेलवाल अभी कर रहे हैं। प्रतिवर्ष माता का जागरण व फूल बंगला की झांकी मथुरा के इस परिवार द्वारा ही सजाई जाती है और ग्राम खुडियाना में स्वागत द्वार का निर्माण भी किसी परिवार ही कराता है।
अतुल खंडेलवाल ने पत्रिका से बातचीत के इस मंदिर का अपेक्षित विकास नहीं होने पर अपना दर्द जाहिर किया। सभी के सहयोग से देवी धोलागढ़ के मैया के स्थान को स्थापित किया जा सकता है। इसके अलावा माता धौलागढ़ देवी ट्रस्ट ने भी कई विकास के कार्य मंदिर में कराए हैं। उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा इस मंदिर को अपनी योजनाओं में कभी शामिल नहीं किया गया था। देवी धौलागढ में श्रद्धालुओं के रात्रि ठहराव की कोई व्यवस्था नहीं है। पीने के पानी की भी समस्या है। लेकिन सरकार ने मंदिर के विकास के लिए कभी बजट नहीं दिया गया।