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भानगढ़ उजडऩे के बाद सूरत सिंह ने बसाया था सूरतगढ़

भूतों की नगरी के नाम से विख्यात भानगढ़ से जुड़ा सूरतगढ़ का इतिहास

अलवरNov 25, 2020 / 05:53 pm

Shyam

भानगढ़ उजडऩे के बाद सूरत सिंह ने बसाया था सूरतगढ़

भानगढ़ उजडऩे के बाद सूरत सिंह ने बसाया था सूरतगढ़

अलवर. थानागाजी क्षेत्र के गांव सूरतगढ़ का इतिहास काफी प्राचीन है। गांव बड़े बुजुर्गों ने बताया कि सूरतगढ़ का इतिहास प्राचीन पर्यटन स्थल भूतों की नगरी के नाम से विख्यात भानगढ़ से जुड़ा हुआ है। भानगढ़ यहां रहने वाले शींजा नामक एक तांत्रिक के श्राप के कारण बर्बाद हुआ था। किवदंती है कि यह तांत्रिक भानगढ़ की राजकुमारी रानी रत्नावती बहुत सुंदर थी, जिस पर मोहित हो गया था। रानी को वश में करने के लिए तांत्रिक ने उसकी नौकरानी को खुशबू वाला तेल दिया। तेल को देखकर रानी माजरा समझ गई और उस तेल को एक बड़ी चट्टान पर डालने को कहा। तेल डालते ही चट्टान पहाड़ की चोटी पर बनी छतरी में तांत्रिक शींजा सेवड़ा के ऊपर गिर गई और मर गया, लेकिन मरते-मरते तांत्रिक ने भानगढ़ के 24 घंटे में विनाश का उजडऩे का श्राप दे गया और यहां के मंदिरों को छोडक़र यह इलाका एक ही रात में बर्बाद हो गया।बताते हैं उसी एक रात में भानगढ़ खाली हो गया था, उसी दौरान भानगढ़ से सूरतसिंह के साथ बहुत से परिवार यहां तीनो ंऔर से घिरी खाली जगह देख बस गए थे। यहां की बसावट के साथ ही देवी देवताओं की मूर्तियां आदि इसके स्पष्ट प्रमाण को बताती है। गांव सूरतगढ़ में करीब 500 से अधिक घर हैं तथा 3000 से अधिक लोग निवास करते हैं। यहां शिक्षा की दृष्टि राजकीय माध्यमिक विद्यालय विद्यालय हैं, चिकित्सा की दृष्टि से आयुर्वेदिक औषधालय व एक स्वास्थ्य
केंद्र है।
गांव का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी
गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी, गलीचा, चमड़े की जूतियां एवं पशु पालन कर दुग्ध उत्पादन हैं। गांव में अधिकतर परिवार खेती बाड़ी कर अपना जीवन यापन करते हैं, साथ पशु पालन कर दुग्ध उत्पादन भी करते हैं। गांव में कुछ कुछ परिवार चमड़े के व्यवसाय से भी जुड़े हैं जो चमड़े की बेहतरीन सुंदर जूतियां बनाकर बड़े बड़े शहरों में शोरूमों में सप्लाई होती है। वही बहुत से परिवार गलीचे कालीन बनाने के व्यवसाय से भी जुड़े हैं।
यातायात साधनों की समस्या
गांव में आवागमन के लिए साधनों की कमी है, जिससे लोग परेशान हैं। दौसा थानागाज़ी वाया अजबगढ़ स्टेट हाइवे 52 पर स्थित ग्राम बामनवास चौगान के माता स्टैंड से करीब 3 किमी साइड में डामर सडक़ गांव तक आती है लेकिन परिवहन का कोई साधन गांव तक नहीं आता। लोगों को स्टेट हाइवे 52 बामनवास चौगान माता स्टैंड पर से पैदल ही गांव तक आना पड़ता है ।
मेला का होता है आयोजन
गांव संतों की तपोभूमि भी रहा हैं। यहां बहुत से सन्त शिरोमणियो ने तपस्या की है। गांव से 500 मीटर की दूरी पर आम के बगीचे में संत बाबा लक्कड़ दास, खाखी दास महाराज,अमर ज्योति महाराज सहित अनेक संतों की समाधियां छतरियां है। भाद्रपद मास में त्रयोदशी को बाबा लक्कड़ दास का मेला व भंडारा होता है।

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