फसलों की सुरक्षा के लिए लोटनल तथा मल्चिंग पर उद्यान विभाग से किसानों को अनुदान भी दिया जाता है। स्थानीय किसान भी इस तरह की योजनाओं का लाभ लेकर फायदे की खेती कर सकते हैं। तकनीक का उपयोग कर खेती करना लाभकारी होता है, लेकिन यहां के किसान आज भी परपरागत खेती से जुड़े हैं। कुछ किसान अब खेती छोड़ लीज पर जमीन देकर घर बैठे पैसा कमा रहे हैं और उनकी कृषि भूमि पर तकनीक के सहारे बाहर के किसान मुनाफा ले रहे हैं।
अक्टूबर में करते हैं तैयारी दूसरे प्रदेश के अधिकतर उत्तरप्रदेश के किसान समूहों में बंट कर स्थानीय किसानों से खेती की जमीन किराए पर लेते हैं। इसमें जुताई कर तीन फीट गहरी खाई बनाकर बीज रोपाई के लिए तैयार करते हैं। इस खाई में गोबर की देशी खाद तथा खेती के लिए अन्य जरूरी सामग्री डाल कर एक फीट गहरा छोड़ देते हैं। नंवबर माह में तैयार जमीन में उन्नत किस्म के कद्दुवर्गीय सब्जियों तथा फलों के बीज रोपते हैं। जनवरी से उत्पादन लेना शुरू कर देते हैं। अलग-अलग किस्मों की उन्नत बीजों से तैयार फसलों से यह लोग अप्रेल तथा मई महीने तक उत्पादन लेते हैं।
सर्दी व रोगों से बचाव के लिए करते हैं यह उपाय कृषि विज्ञान केन्द्र के डाँ. सुभाष यादव बताते हैं कि फसलों को सर्दी से बचाने के लिए बीज को लगभग एक से डेढ फीट नीचे छोड़ी गई खाई में रोपते हैं। इसके बाद सरकंडे या मूंजे, कड़बी आदि लगाते हैं। यह छोटे पौधों को सर्द हवाओं से बचाते हैं। कुछ लोग लोटनल का इस्तमाल भी करते हैं। जिससे पौधों को कीट तथा भिन्न प्रकार के रोगों तथा शीतलहर से बचाया जाता है। लोटनल में पौधा सुरक्षित रहता है।