अलवर सहित प्रदेश के 13 जिलों के लिए 37 हजार करोड़ की इस परियोजना की डीपीआर केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) को पहले ही भेजी जा चुकी है। परियोजना के तहत राज्य सरकार की ओर से झालावाड़, बारां और कोटा जिले की नदियों को आपस में जोड़कर नहर के जरिये पानी को धौलपुर तक लाने की योजना है। यहां से बड़ी नहरें निकालकर अलवर, भरतपुर, जयपुर, अजमेर, टोंक, सवाईमाधोपुर और करौली समेत 13 जिलों में पानी पहुंचाना प्रस्तावित है।
लाना है नदियों का सरप्लस पानी दक्षिणी पूर्वी राजस्थान में बारिश के समय बाढ़ की वजह बनने वाली कालीसिंध, पार्वती, मेज और चाकन नदियों का सरप्लस पानी कैनाल के जरिए लाया जाएगा। प्रोजेक्ट में चंबल नदी से किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होगी। चंबल के ऊपर एक्वाडक्ट बनाकर पानी लाने के बजाय सरकार ने चंबल के नीचे जल सुरंग बनाकर कैनाल मार्ग को आगे बढ़ाने का विकल्प चुना है। रास्ते में जिस भी नदी और बांध में पानी की कमी होगी उसमें जरूरत के मुताबिक पानी पहुंचाया जाएगा। सरकार का दावा है कि प्रोजेक्ट के पूरा होने पर इससे 2051 तक न केवल इस इलाके की जनता की प्यास बुझेगी, बल्कि खेतों में सिंचाई के लिए भी पानी उपलब्ध होगा।
अनापत्ति जरूरी प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने से पहले राज्य सरकार को मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश से भी अनुमति लेनी होगी। पिछले दिनों करौली जिले में आयोजित एक बैठक में केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि इस्टर्न राजस्थान कैनाल परियोजना को भारत सरकार पूरा कराना चाहती है, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार से अभी एनओसी जारी नहीं किए जाने के कारण यह प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पा रहा है।