इसका कारण है कि देश में सर्वत्र 10 दिन तक रामलीला का मंचन ताकि सनातन संस्कृति स्थापित हो। शक्ति को समाज के लिए, ज्ञान को मानवता के लिए लगाते हैं तो राम हैं अन्यथा रावण हैं। इस भाव की स्थापना के लिए इस प्रकार के कार्यक्रम जरूरी है। कुरीतियों को मिटाने के लिए बदलाव जरूरी है। मानवता के लिए यह जरूरी है कि ऐसे रावणों का संहार हो। देश में हर परिवार में इसके लिए संस्कारों को फैलाया जाए जिससे भारत विश्व गुरु बन सके।
समारोह के मुख्य अतिथि वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा के कुलपति प्रो. आरएल गोदारा थे। विशिष्ट अतिथि भर्तृहरि धाम मेला कमेटी के संयोजक पदम चंद गुर्जर थे। संस्था के अध्यक्ष महानिदेशक राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने बताया कि उन्होंने पारसी शैली पर आधारित यह नाटक 1958 से प्रतिवर्ष 16 दिन तक आयोजित किया जा रहा है। संस्था अध्यक्ष पंडित धर्मवीर शर्मा ने आभार जताया।
नाथ सिद्ध योगियों की तपोभूमि सांसद बालकनाथ ने कहा कि अलवर तो नाथ परम्परा के साधू संतों की तपोभूमि रही है जिसके चलते मैं सेवा भावना के इरादे से आपके मध्य हूं। अलवर की तपोभूमि में अनेक संत हुए हैंं। यहां आकर अब भी सुकून महसूस होता है। उन्होंने कहा कि उनके गुरु महंत चांदनाथ ने अलवर से राजनीति में उतरने का फैसला किया क्योंकि यह नाथ सिद्ध योगियों की तपोभूमि है। उन्होंने चुटकी ली कि कई बार लोग राजनीति के चलते कहते हैं कि वे बाहरी हैं। जबकि अलवर में उनका जन्म हुआ है। साथ ही उनकी संन्यास परम्परा के महान योगियों की धरती भी अलवर है। ऐसे में यह उनकी स्वाभाविक सेवाभूमि है।