scriptKargil Vijay Diwas: युद्ध का हर मंजर आज भी आंखों के सामने, जान जोखिम में डाल सेना के लिए बनाया था रास्ता | Kargil Vijay Diwas: Every scene of the war is still in front of our eyes, a path was made for the army by risking their lives | Patrika News
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Kargil Vijay Diwas: युद्ध का हर मंजर आज भी आंखों के सामने, जान जोखिम में डाल सेना के लिए बनाया था रास्ता

करगिल विजय दिवस के मौके पर हम आज बात कर रहे हैं, उन सैनिकों की। जिन्होंने टाइगर हिल पर अपनी टीम के साथ तिरंगा लहराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था

अलवरJul 26, 2024 / 07:41 am

Kailash

Kargil Vijay Diwas
अलवर। करगिल विजय दिवस के मौके पर हम आज बात कर रहे हैं, उन सैनिकों की। जिन्होंने टाइगर हिल पर अपनी टीम के साथ तिरंगा लहराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था और आज सकुशल अपने परिवार के बीच अपना जीवनयापन कर रहे हैं। अलवर के मोती नगर निवासी रिटायर्ड नायब सुबेदार ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि इंडियन आर्मी में पहली जॉइनिंग फरवरी 2 फरवरी 1991 को मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री रेजीमेंट सेंटर अहमदनगर महाराष्ट्र में ट्रेनिंग की गई। 9 महीने ट्रेनिंग करने के बाद पहली पोस्टिंग 13 मैकेनाइज्ड 18 राजपूत बबीना मध्य प्रदेश में हुई। बबीना के बाद अमृतसर पंजाब में पोस्टिंग पंजाब से बठिंडा बठिंडा से फिरोजपुर पंजाब में सन 1995 मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री के अंदर 25 वीं यूनिट तैयार हुई। जिसमें न्यू जॉइनिंग 1995 में 25 यूनिट मैकेनाइज्ड में हुई।
फरवरी 1997 में शर्मा को राष्ट्रीय राइफल के अंदर पोस्टिंग दी गई और उन्हें जम्मू एंड कश्मीर के अंदर किश्तवाड़ डोडा सेक्टर 26 में तैनात किया। शर्मा राष्ट्रीय राइफल बटालियन में नायक के पोस्ट पर था जो इको कंपनी में हवलदार के पद पर कंपनी हवलदार मेजर की ड्यूटी दी गई। जिस समय कारगिल युद्ध हुआ उस समय कंपनी हवालदार मेजर की पोस्ट पर नियुक्त कर डोडा सेक्टर से उन्हें बारामुला भेजा गया और दसवीं महार रेजीमेंट और बटालियन के साथ 26 राष्ट्रीय राइफल एक कंपनी ने मिलकर के कारगिल युद्ध में भाग लिया। उसे समय में बारामुला सेक्टर के अंदर मई 1999 में महार रेजीमेंट बटालियन के साथ किरण सेक्टर में तैनात किया।
कारगिल युद्ध के दौरान शर्मा को किरण सेक्टर से टाइगर हिल की तरफ तैनात किया। कारगिल युद्ध के दौरन उनके कैंप के ऊपर अटैक हुआ। जिसमें शर्मा के कई साथी शहीद हो गए। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। दुश्मन को परास्त करने के लिए जी जान लगा दी। रिटायर्ड नायब सुबेदार ओमप्रकाश ने बताया कि पहाड़ी पर रात में एक फायर आया और उनकी पोस्ट के आगे आकर एक गोला गिरा तो उन्होंने तुरंत नीचे कंपनी कमांडर को सूचना दी। सूचना देने के बाद कंपनी कमांडर ने सभी जवानों को अलर्ट कर दिया और सभी ने रात भर मोर्चा संभाले रखा तथा नीचे बेस में भी रिपोर्ट दी।
इसके बाद टाइगर हिल से एक फायर हुआ तभी हमारी टुकड़ी ने भी ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। युद्ध के दौरान उनको पांच दिनों तक भोजन व पानी नहीं मिला। अत्यधिक सर्दी होने के कारण उनके चेहरे सहित शरीर पर छाले हो गए। लेकिन अपना हौसला कम नहीं होने दिया । लगातार युद्ध कर दुश्मन से लोहा लिया। जब आपरेशन विजयी होने के साथ युद्ध समाप्त हुआ तो सारे घाव भर गए। उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान 9 माह तक घर वालों से कोई सम्पर्क नहीं हुआ। कारगिल विजय के बाद घर लौटे तब परिजनों से मिले। आर्मी में 26 साल ड्यूटी करने के बाद 28 फरवरी 2017 को रिटायरमेंट हुए।

युद्ध का हर मंजर आज भी आंखों के सामने

रामनगर निवासी सूबेदार बाबूलाल यादव ने बताया कि करगिल युद्ध में जो हुआ वो मैं कभी नहीं भूल सकता। युद्ध का एक-एक मंजर मेरी आंखों के सामने है। मैं अपने परिवार के साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन करके लौटा ही था कि दो घंटे बाद सेना के मुख्यालय से संदेश आया कि करगिल युद्ध में जाना है। मैं दिल्ली में एडी आर्मी में पोस्टेड था और परिवार के साथ दिल्ली ही रह रहा था। बेटा मात्र पांच साल का था। तेज गर्मी थी, करगिल का रास्ता तक पता नहीं था। गाड़ी में बैठा दिया और मैप के आधार पर करगिल पहुंच गए। हमारा काम सेना को सहारा देना था, सेना आगे बढ़ रही थी हम पीछे से उनको सहारा देते चल रहे थे। दुश्मन हमला कर रहा था। मिसाइल और एयरगन के हमले से सेना को बचाते चल रहे थे। परिवार से बात को दिल्ली कॉल बुक होती थी।

फौज में सेवा के लिए आते हैं…मौज के लिए नहीं

वीरांगना सलमा बेगम ने बताया कि पति शहीद सलीम खान करगिल युद्ध के दौरान पूंछ में पोस्टेड थे। युद्ध में जाने से पहले एक महीने की छुट्टी बिताकर गए थे। युद्ध के चलते बातचीत नहीं होती थी। शहीद होने के कुछ दिन पहले बात हुई थी। परिवार में शादी थी, मैंने कहा कि आप शादी में जरूर आना तो कहा कि आऊंगा जरूर जिंदा या मरकर। मैंने कहा कि आप ऐसा मत बोलो, युद्ध हो जाए तो आप सेना की नौकरी छोड़ देना तो पति ने कहा कि फौज में सेवा के लिए आते हैं मौज के लिए नहीं। मुझे आज मौका मिला है देश के लिए कुछ करने का। युद्ध के दौरान पैर में गोली लगी थी, सेना के ऑफिस से जानकारी मिली मुझे चिंता हो रही थी तब उन्होंने कहा कि चिंता मत करो मैं ठीक हूं। वो सेना में रहते हुए परिवार के लिए खत लिखते थे।

जान जोखिम में डालकर सेना के लिए बनाया रास्ता

अलवर के बोहरा कॉलोनी निवासी सूबेदार मेजर नेमीचंद ने बताया कि जब करगिल का युद्ध हुआ तो मेरी पोस्टिंग 112 इंजीनियर रेजीमेंट में थी। हम पश्चिम बंगाल में डयूटी पर थे। वहां से सेना का संदेश आया कि आपको करगिल युद्ध के लिए जाना है। सख्त आदेश था कि परिवार को इसकी जानकारी नहीं दें कि वहां कैसे हालात है, बस यही कहना है कि हम सब ठीक हैं। उस समय मेरी पत्नी भी मेरे साथ थी, बेटी बहुत छोटी थी, उनको वहां से चंडीगढ़ सेना के क्वार्टरों में भेज दिया। मेरा काम था सेना के लिए रास्ता बनाना। दुश्मन ने कारगिल में जगह-जगह पर बम दबा दिए थे। हैंड ग्रेनेड व गोले लगा दिए गए थे, सेना यदि वहां से निकलती है तो नुकसान हेाता है। ऐसे में हर दिन जान जोखिम में डालकर सेना के लिए रास्ता तय कर रहे थे। हेलीकॉप्टर से बिस्किट, चने के पेकैट फेंके जाते थे। नदी का पानी पीना पड़ा था।

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