हनुमान मंदिर पर लगता है मेला
अलवर जिले के सरिस्का बाघ परियोजना के अंर्तगत पांडुपोल हनुमान जी लक्खी मेला 10 सितंबर को शुरू होगा। इस मेले के अवसर पर करीब 50 हजार श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। पांडुपोल हनुमान मंदिर अलवर शहर के करीब 55 किलोमीटर दूर है। सरिस्का के बीचों-बीच स्थित इस हनुमान मंदिर का इतिहास महाभारत काल से है। माना जाता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान भीम ने अपनी गदा से पहाड़ में प्रहार किया था, गदा के एक वार से पहाड़ टूट गया और पांडवों के लिए रास्ता बन गया। वहां आज भी पहाड़ के बीच में बड़ा छेद बना हुआ है।
पांड़ुपोल का पौराणिक इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडूपोल में बजरंग बली ने भीम को दर्शन दिए थे। महाभारत काल की एक घटना के अनुसार द्रौपदी अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार इसी घाटी के नीचे की ओर नाले के जलाशय पर स्नान करने गई थी। स्नान के बाद द्रोपदी ने महाबली भीम को पुष्प लाने को कहा तो महाबली भीम पुष्प की खोज करता हुआ जलधारा की ओर बढऩे लगा। आगे जाने पर महाबली भीम ने देखा की एक वृद्ध विशाल वानर अपनी पूंछ फैला आराम से लेटा हुआ था। वानर के लेटने से रास्ता पूर्णतया अवरुद्ध था ।
भीम के आगे निकलने के लिए कोई ओर मार्ग नही था। उन्होंने वृद्व वानर से कहा कि तुम अपनी पूंछ को रास्ते से हटा लो। वानर ने कहा कि मै वृद्व अवस्था में हूं। आप इसके ऊपर से चले जाएं। भीम ने कहा कि मैं इसे लांघकर नहीं जा सकता, आप पूंछ हटाएं। इस पर वानर ने कहा कि आप बलशाली दिखते हैं, आप स्वयं ही मेरी पूंछ को हटा लें। भीम ने वानर की पूंछ हटाने की कोशिश की तो पूंछ भीम से टस से मस भी ना हो सकी।
भीम की बार बार कोशिश करने के पश्चात भी भीमसेन वृद्ध वानर की पूंछ को नही हटा पाए और समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नहीं है ।भीम ने हाथ जोड़ कर वृद्ध वानर को अपने वास्तविक रूप प्रकट करने की विनती की। इस पर वृद्ध वानर ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर अपना परिचय हनुमान के रूप में दिया।