70 के दशक में सरिस्का के अफसरों से सीखीं बारीकियां
महात्मा प्रेमनाथ शर्मा करीब 35 साल की आयु में फुटबॉल खेलकर घर आ रहे थे तभी एक गिलहरी का बच्चा घायल अवस्था में नीचे गिरा। उसे घर ले आए और फिर पक्षी प्रेम जागता गया। 70 के दशक में वह सरिस्का के अफसरों से मिले और फिर लुप्तप्राय: पक्षियों का डेटा जुटाया। पक्षियों की सेवा करने की ठान ली। पशु-पक्षी एवं पर्यावरण सुरक्षा समिति बनाई। टीम को जोड़ा और फिर मिशन शुरू कर दिया जो आज तक जारी है।
राजस्थान के इस जिले के सबसे बड़े हॉस्पिटल के हाल-बेहाल, परामर्श-दवा फ्री, सोनोग्राफी में जेब ढिली
यहां सुनाई देती है गौरैया की चहचहाहट
शहर के बाला किला हो या फिर सरिस्का। इसके अलावा डहलावास, उमरैण, अकबरपुर, किशनगढ़बास आदि जगहों पर घायल पक्षियों का इलाज किया। मकर संक्रांति पर जयपुर में ज्यादा पक्षी घायल होते हैं। ऐसे में उनकी टीम उस दिन जयपुर में होती है और घायल पक्षियों का इलाज करती है। गौरैया भी काफी संख्या में घायल होती हैं। उन्होंने गौरैया के लिए घोंसले बांटने का भी काम किया।
एक ही सपना…पक्षियों के इलाज को अस्पताल हो अपना
महात्मा प्रेमनाथ शर्मा का सपना है कि पक्षियों के इलाज के लिए सरकारी अस्पताल बनवाना है। कहते हैं कि देश के लिए फुटबॉल खेला। अब पक्षियों की सेवा करना ही धर्म है। उन्हें कई अवार्ड भी प्रशासन से लेकर सरिस्का के अफसरों की ओर से मिले हैं।