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अलवर

महाराजा से कैसे संन्यासी बने भर्तृहरि, नाटक में जीवन वृतांत का सजीव मंचन

राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर सोमवार को राजा भर्तृहरि नाटक का मंचन शुरू हुआ। नाटक 15 दिनों तक लगातार चलेगा।

अलवरOct 15, 2024 / 01:09 am

mohit bawaliya

अलवर. राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर सोमवार से महाराजा भर्तृहरि नाटक का मंचन देर रात प्रारंभ हुआ। सहकारिता मंत्री गौतम दक ने इसकी शुरुआत की। नाटक में महाराजा भर्तृहरि के राजा के संन्यासी बनने तक का सफर नीति, श्रृंगार व वैराग्य शतक के माध्यम से दिखाया गया। नाटक को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। अगले 15 दिन तक रोजाना इस नाटक का मंचन किया जाएगा। आने वाले दिनों में अलवर के अलावा हरियाणा, एमपी और यूपी से बड़ी संख्या में लोग इसे देखने के लिए पहुंचेंगे। 1958 से भर्तृहरि नाटक का मंचन किया जा रहा है। गौरतलब है कि उज्जैन के राजा भर्तृहरि ने संन्यासी बनने पर अलवर के भर्तृहरि में तपस्या की। बाबा भर्तृहरि को अलवर के लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
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1958 से चल रहा है मंचन
संस्था के अध्यक्ष पं. धर्मवीर शर्मा ने बताया कि यह नाटक पारसी शैली की परंपरा को जीवंत रखे हुए हैं। यह नाटक भक्तों की आस्था से जुडा है। प्रचार मंत्री अमृत खत्री ने बताया कि 1958 में जब पहली बार इस नाटक का मंचन रंगमंच पर किया तो उस समय राजा हरीशचंद्र व वीर अभिमन्यू नाटक होते थे, जिनकी बुङ्क्षकग से 200 से 300 रुपए मिलते थे, लेकिन भर्तृहरि नाटक के पहले ही शो में एक ही दिन में 2000 रुपए की बुङ्क्षकग हुई थी। नाटक के तत्कालीन निदेशक श्यामलाल सक्सेना ने कहा कि यह तीन दिन खेला गया। पहली बार यह नाटक सामान्य पर्दे पर ही दिखाया गया।

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