वापसी की उम्मीद में बैठी पार्टी में इन दिनों पार्टटाइम नेतागिरी का आलम छाया हुआ है। अजी हुजूर इन्हें सूरजमुखी नेता कह सकते हैं। वही सूरजमुखी फूल। फूलों का बाग ही समझ लें। ये पार्टटाइमर इसी बाग के इर्द-गिर्द टकटकी लगाए जमे रहेंगे। जनता के लिए न सडक़ पर दिखेंगे न कहीं सामने आएंगे लेकिन उत्कल प्रदेश सेे साहब के आते ही इनका संघर्ष कुलांचे भरने लगता है। सुना है ऐसे में कई लोग तो दो-तीन दिन जिला मुख्यालय पर ही होटल बुक करा लेते हैं। जिले भर में जहां भी कार्यक्रम होगा ये सब साथ ही नजर आएंगे।
तीरन के ऊपर तीर चले संवेदनशील मुद्दे पर भी कुछ लोगों को सुर्खियों में रहने का चस्का रहता है। असल में ये हुनर है। अब सामने वोट हैं तो बयानों के मामले में कौन पीछे रहे। वही स्थिति तीरन के ऊपर तीर चले। अब उपचुनाव के समय भी एक भाईसाहब के उग्र बयान काम नहीं आए थे तो भी लाइन वही है। फिर भी जब ठान ही ली है तो सुर्खियों में तो रहेंगे ही। लोकल बात बनी लेकिन यहां रामगढ़ वाले के आगे फीके पड़े। तब दीदी पर बयानों के तीर छोड़े और सीधे राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गए। किसी ने ठीक ही कहा है इन भाईसाहब को कमतर कभी मत समझना।
राज की बात आखिर शहर की सडक़ों की मरम्मत क्यों नहीं हो रही है? आखिर क्यों जिम्मेदार कुंडली मार कर चुप बैठे हैं। आखिर क्यों बड़े बाबू से लेकर पीडब्ल्यूडी वाले भी जनता के दर्द पर चुप्पी साधे हैं। रिवाजी जवाब है कि जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई? पर जब गुरुघंटालों से पूछा गया तो जवाब ऐसा आया कि 100 टका बात सच लगी। यूं तो राज की ही बात है पर जनता की जुबान पर भी आ गई है। कारण वही है। जवाब ढूंढेंगे तो अर्थशास्त्रियों या सडक़ शास्त्रियों के पास जाना पड़ेगा। पूरा गणित समझा देंगे। कुछ तो प्रयास आप भी कीजिए।
राजनीति है ही ऐसी चीज चुनाव नजदीक आते ही नेताजी दूसरे नेताजी से लडऩे को तैयार हैं। इस डर से छोटे-बड़े सभी नेता फूंक-फूंक कर कदम रखने लगे हैं। हर कोई प्रतिद्वंद्वी के नए-पुराने चि_े जुटाने में लगा है। ताकि आखिरी समय में शिकस्त दी जा सके। कइयों ने तो अपने चेले चपाटों को यही जिम्मेदारी थमा रखी है कि सामने वाले के कामकाजों पर नजर रखी जाए। खाने-खवाने, जनता से बिगाडऩे जैसे मामले सामने आए तो चुपके से हाइकमान को परोस दिया जाए। कुछ ऐसे भी हैं जिनके पास टिकट लेने से पहले और चुनाव लडऩे के अपने हथियार है। उनकी पारी भी शुरू हो गई है। इस बार टिकट की दौड़ की दूरी बढ़ी तो तय मानों कई विधानसभाओं में चुनाव की लड़ाई नए हथियारों से लड़ी जाने वाली है। वैसे अब यह चर्चा भी राजनीतिक गलियारों में होना शुरू हो गई है। आप भी इन्तजार करते रहिए एक-एक करके सामने आने वाले हैं।
जब गोटी बैठती है तो एेसे… जिले के एक जरुरी महकमें के आला अधिकारी की मनमर्जी से महिलाएं परेशान हैं। खूब हुल हिज्जत की, लेकिन आज तक कोई इनका कुछ बिगाड़ नहीं पाया। जनाब की हिम्मत तो देखिए अपने से बड़े अधिकारी के आदेश भी इन पर बेअसर हो रहे हैं। बेचारे बड़े साहब अपने से ऊपर मंत्री संत्री सबको अपनी पीड़ा बता चुके हैं यहां तक की अपना तबादला भी कराने को तैयार है। लेकिन फिर भी सब चुप्पी साधे हुए हैं। हमारे जिले के एक मात्र सबसे बड़े अधिकारी को तो जैसे सांप सूंघ गया है। आज तक यहां जाकर परेशानी देखने की जहमत नहीं उठाई। ऐसा लग रहा है जैसे कि इस अधिकारी ने ऊपर से नीचे तक गोटी फिट कर रखी है। इसलिए सब मौन लगाए हुए हैं। अधिकारी स्वयं तो मनमर्जी की नौकरी कर रहे हैं । लेकिन क्या मजाल इनके राज में इनके नीचे के महकमें में कोई पत्ता भी हिल जाए।