पंडित यज्ञदत्त शर्मा ने बताया कि इस बार 131 वर्ष बाद गुरु, राहु का विशेष योग बन रहा है। इस वर्ष दीपावली पर गुरु सिंह राशि में तथा राहु कन्या राशि में रहेगा। ऐसा योग होने से लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किए गए उपायों आशानुकूल व शीघ्र सफलता मिलती है, साथ ही जातकों की मनोकामना भी पूरी होती हे। इससे पहले वर्ष 1884 में यह योग बना था। उन्होंने बताया कि दीपावली पर इस बार सौभाग्य, बुद्धादित्य व धाता योग भी बन रहे हैं। जो सभी के लिए विशेष खुशहाली, समृद्धिदायक व धन व ऐश्वर्य बढ़ाने वाला रहेगा।
स्थिर लगन में होगी लक्ष्मी पूजा दीपावली पर माता लक्ष्मी व गणेश की पूजा की जाएगी। इस दिन बहि खातों की भी पुजा की जाती है। इसके साथ ही कार्यालय, दुकान, फैक्ट्री आदि में भी लक्ष्मी पूजन किया जाता है। पंडित धनश्याम दत्त शास्त्री परवेणी वाले ने बताया कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या बुधवार को शुभ मुहूर्त में पूजा की जाएगी। उन्होंने बताया कि कलम व दवात पूजा 7 बजे से 9 बजे तक होगी । ये लाभाम्रत समय है। इसमें लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। दिन के 12 बजे से 1 बजकर 30 मिनट तक राहुकाल रहेगा।। इसमें पूजा करना तथा शुभ कार्य करना वर्जित है। श्रीपूजा 6 बजकर 15 मिनट से 8 बजकर 15 मिनट तक शुभ रहेगा। ये घर में सुख शांति पैदा करता है। उन्होंने बताया कि इसके पश्चात अर्धरात्रि का मुहूर्त मान्य रहेगा। लक्ष्मी पूजा 12 बजकर 45 मिनट से प्रारंभ होकर 3 बजे तक मान्य है। लक्ष्मी पूजा स्थिर लग्न में करनी चाहिए। वृष, सिंह, वृश्चिक तथा कुंभ लग्न ये स्थिर लग्न है। इसमें शुभ कार्य करना अति उत्तम है।
भगवान राम की अयोध्या में हुई थी वापसी दीपावली को रोशनी का त्योहार कहा जाता है। इसे मनाने के पीछे यूं तो कई पौराणिक व ऐतिहासिक आख्यान है लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर एवं लंका पर विजय प्राप्त कर सीता व लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। इस दिन कार्तिक मास की अमावस्या होने से घन काली रात थी। इसलिए ग्रामीणों ने दीए जलाएं , दीयों की जगमग रोशनी से अमावस की काली रात में उजियारा हो गया। तब से इस दिन दीए जलाने की परंपरा चली आ रही है।
इसलिए भी मनाते हैं दीपावली इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को कैद से मुक्त कर पाताल लोक का राजा बना दिया था, जिससे स्वर्ग का राजा इंद्र बहुत खुश हुआ। इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान क्षीर सागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई और उन्होंने भगवान विष्णु को पति के रूप में स्वीकार किया। दीपावली के दिन ही राजा विक्रमादित्य ने अपने नाम से नवसंवत की रचना प्रारंभ की थी।