लोकसभा में प्रत्याशी उतारने का आंकड़ा इस तरह जुड़ा : भाजपा ने वर्ष 1999 में जसवंत यादव को लोकसभा चुनाव में उतारा। वह जीते भी। 2004 तक सांसद रहे। वर्ष 2004 में उनका टिकट काटकर महंत चांदनाथ को वर्ष 2004 के चुनाव में दिया। वह जीत दर्ज नहीं कर पाए। वर्ष 2009 के चुनाव में जसवंत यादव की पत्नी किरण यादव पर भाजपा ने दाव लगाया। वह भी जीत दर्ज नहीं कर पाई। वर्ष 2014 में फिर पार्टी ने यहां से यादव प्रत्याशी चांदनाथ को मैदान में उतारा और वह जीत गए लेकिन उनके निधन के बाद 2017 में उपचुनाव हुआ। भाजपा ने जसवंत यादव को प्रत्याशी बनाया लेकिन वह भी हार गए। वर्ष 2018 में महंत बालक नाथ मैदान में आए और जीते।
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उम्मीदवारी पर नजर
आगामी लोकसभा चुनाव में महज पांच महीने का समय बचा है। ऐसे में भाजपा एवं कांग्रेस अभी से लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं। फिलहाल दोनों दलों की नजरें उम्मीदवारी पर टिकी है। पूर्व में जल्द उम्मीदवारी घोषित करने से राजनीतिक दलों को लाभ भी हुआ है। इस कारण दोनों ही दल अभी उपयुक्त उम्मीदवार की तलाश में जुट गए हैं। दोनों प्रमुख दल अलवर लोकसभा क्षेत्र के पुराने आंकड़ों को ध्यान में रखकर उम्मीदवारी पर मंथन कर रहे हैं।
एक ही समाज से ये बने हैं सांसद
अलवर जिला यादव बाहुल्य होने के कारण यहां लोकसभा चुनाव में अक्सर यादव प्रत्याशी ही जीत कर लोकसभा पहुंचते आए हैं। दोनों प्रमुख दलों के लगभग एक दर्जन यादव सांसद अलवर में रह चुके हैं। इनमें डॉ. करण सिंह यादव, राम सिंह यादव, घासीराम यादव, जसवंत यादव, बाबा बालक नाथ, महंत चांदनाथ योगी सहित कई नाम शामिल हैं।
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अन्य वर्ग के भी रह चुके अलवर से सांसद
अलवर जिले में 1952 व 57 में शोभाराम, 1962 में काशीराम गुप्ता, 1967 में भोलानाथ मास्टर, 1971 में हरिप्रसाद शर्मा, 1991 में महेन्द्र कुमारी, 1996 में नवलकिशोर शर्मा, 2009 में जितेन्द्र सिंह भी सांसद चुने जा चुके हैं।