सरिस्का टाइगर रिजर्व में पर्यटन को बढ़ावा देने एवं जंगल में पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए पिछले दिनों जालोर व माउंट आबू से तीन भालू सरिस्का लाए गए। अभी एक और भालू जालोर से लाया जाना है। भालुओं की मॉनिटरिंग भी बाघों के समान ही की जा रही है, लेकिन भालू जंगल से निकल कभी पहाड़ी क्षेत्र तो कभी आबादी क्षेत्र में पहुंच रहे हैं।
पहले हरसोरा के पहाड़ पर, अब आबादी में आए : सरिस्का टाइगर रिजर्व से भालू कुछ समय पहले बानसूर क्षेत्र के हरसोरा के पहाड़ियों पर पहुंच गए। इस कारण सरिस्का एवं अलवर वन मंडल के वनकर्मी कई दिनों तक भालू की मॉनिटरिंग में रहे। वहीं पिछले दिनों मादा भालू पहले इंदोक की पहाड़ी पर पहुंच गई, जिसे रेस्क्यू कर वापस सरिस्का के जंगल में छोड़ा गया। कुछ दिन यह मादा भालू ग्राम बल्लाना होते हुए जयसमंद बांघ और दादर तक पहुंच गया। करीब तीन दिनों तक आबादी के आसपास यह भालू घूमता रहा, गनीमत यह रही कि आबादी के अंदर तक यह नहीं पहुंच पाया। वनकर्मियों ने मश्क्कत के बाद मादा भालू को एमआइए के समीप से रेस्क्यू किया।
पूर्व में सरिस्का में एक भालू काफी समय रहा। छह- सात साल पहले यह भालू अचानक सरिस्का के जंगल से गायब हो गया। भालू की काफी तलाश की गई, लेकिन उसका पता नहीं चल सका। यही कारण है कि भालुओं को लेकर वनकर्मियों की चिंता ज्यादा है।
सरिस्का का जंगल अच्छा, फिर भी भालुओं को समस्या सरिस्का का जंगल भौगोलिक दृष्टि से अन्य जंगलों से बेहतर माना गया है। यहां पहाड़, समतल, हरियाली, पानी एवं अन्य जरूरी संसाधन हैं, फिर भी भालुओं को यहां रुकने में परेशानी वनकर्मियों की समझ से बाहर है।