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पहले करोड़ों रुपए के कर्ज में थी, अब प्रदेश में सबसे समृद्ध है Alwar UIT, खजाने में हैं 50 करोड़ रुपए

Alwar UIT किसी समय करोड़ों के कर्ज में थी, लेकिन अब यूआईटी के पास करोड़ों का खजाना है।

अलवरMar 02, 2020 / 01:09 pm

Lubhavan

Alwar UIT Has Fund Of More Than 50 Crores

पहले करोड़ों रुपए के कर्ज में थी, अब प्रदेश में सबसे समृद्ध है Alwar UIT, खजाने में हैं 50 करोड़ रुपए

अलवर. करीब 5 साल पहले करोड़ों रुपए कर्ज लेने के बावजूद ( Alwar UIT ) अलवर यूआईटी के खजाने में फिर से 40 से 50 करोड़ों रुपए आ चुके हैं। इस समय पूरे प्रदेश में अलवर यूआइटी की सबसे मजबूत आर्थिक स्थिति है।
पिछले कुछ सालों में यूआइटी ने खर्च कम किया और राजस्व अधिक जुटाया। अब यूआईटी की दो प्रमुख आवासीय योजना धरातल पर आने से बड़ा खजाना हाथ लग गया है। जिससे यूआइटी को हर बार भूखण्डों की नीलामी से करोड़ों रुपए मिलने लगे हैं। यूआइटी ने करीब छह साल पहले शहर में कई बड़े पुलों का निर्माण किया। जिसके एवज में ऋण लिया गया। विज्ञान नगर व शालीमार नई आवासीय योजनाएं आने के बाद यूआइटी का राजस्व बढ़ गया है।
पुरानी देनदारी अब तक

पिछली कांग्रेस सरकार के समय अलवर में चार बड़े पुलों का निर्माण हुआ। जिसके लिए यूआईटी को करोड़ों रुपया कर्ज लेना पड़ा। जो पिछले करीब छह साल से यूआइटी चुकाने में लगी। अगले तीन से चार सालों तक बाकी करोड़ों रुपए चुकाना भी है। इसके अलावा मिनी सचिवालय में भी यूआइटी पर करोड़ों का भार आ चुका है। इन सब देनदारियों के बावजूद अलवर यूआइटी के खजाने में अब 40 से 50 करोड़ रुपए हैं।
हर नीलामी में करोड़ों मिल रहे

यूआइटी के पास नई आवासीय योजनाओं के अलावा पुरानी कॉलोनियों में आवासीय व व्यावसायिक भूखण्ड हैं। यूआइटी हर नीलामी में करोड़ों के भूखण्ड बेच देती है। पिछली कई बार की नीलामी में रिकॉर्ड महंगे भूखण्ड बिके हैं। जिससे यूआइटी को बड़ा राजस्व मिला है।
बड़ा खर्च भी करना पड़ेगा

वैसे अलवर यूआइटी की मोटी देनदारी भी हैं। भिवाड़ी यूआइटी को करीब 15 करोड़ रुपए देने हैं। 22 करोड़ रुपए मार्बल एवं कातला मण्डी बाजार बनाने के लिए जमीन अवाप्ति का पैसा जमा कराना है। नई शालीमार व विज्ञान नगर आवासीय योजना में भी सड़क, नाली, बिजली, पार्क व सीवरेज लाइन जैसी मूलभूत सुविधाओं पर भी करोड़ों रुपए खर्च होने हैं।
अब खजाने में पर्याप्त पैसा

अब यूआइटी के खजाने में पर्याप्त पैसा है लेकिन, देनदारी व खर्चे अधिक हैं। करोड़ों का ऋण चुकाना है। इसके अलावा नई कॉलोनियों में करोड़ों के विकास कार्य कराने हैं।
मनमोहन गुप्ता, वरिष्ठ लेखाधिकारी, यूआइटी अलवर

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