पुरानी देनदारी अब तक पिछली कांग्रेस सरकार के समय अलवर में चार बड़े पुलों का निर्माण हुआ। जिसके लिए यूआईटी को करोड़ों रुपया कर्ज लेना पड़ा। जो पिछले करीब छह साल से यूआइटी चुकाने में लगी। अगले तीन से चार सालों तक बाकी करोड़ों रुपए चुकाना भी है। इसके अलावा मिनी सचिवालय में भी यूआइटी पर करोड़ों का भार आ चुका है। इन सब देनदारियों के बावजूद अलवर यूआइटी के खजाने में अब 40 से 50 करोड़ रुपए हैं।
हर नीलामी में करोड़ों मिल रहे यूआइटी के पास नई आवासीय योजनाओं के अलावा पुरानी कॉलोनियों में आवासीय व व्यावसायिक भूखण्ड हैं। यूआइटी हर नीलामी में करोड़ों के भूखण्ड बेच देती है। पिछली कई बार की नीलामी में रिकॉर्ड महंगे भूखण्ड बिके हैं। जिससे यूआइटी को बड़ा राजस्व मिला है।
बड़ा खर्च भी करना पड़ेगा वैसे अलवर यूआइटी की मोटी देनदारी भी हैं। भिवाड़ी यूआइटी को करीब 15 करोड़ रुपए देने हैं। 22 करोड़ रुपए मार्बल एवं कातला मण्डी बाजार बनाने के लिए जमीन अवाप्ति का पैसा जमा कराना है। नई शालीमार व विज्ञान नगर आवासीय योजना में भी सड़क, नाली, बिजली, पार्क व सीवरेज लाइन जैसी मूलभूत सुविधाओं पर भी करोड़ों रुपए खर्च होने हैं।
अब खजाने में पर्याप्त पैसा अब यूआइटी के खजाने में पर्याप्त पैसा है लेकिन, देनदारी व खर्चे अधिक हैं। करोड़ों का ऋण चुकाना है। इसके अलावा नई कॉलोनियों में करोड़ों के विकास कार्य कराने हैं।
मनमोहन गुप्ता, वरिष्ठ लेखाधिकारी, यूआइटी अलवर