आजादी के बाद से अलवर में इससे विपरीत हालात कभी नहीं हुए हैं। जिला त्रस्त है और खेवनहारों के यहां विदाई और स्वागत पार्टियां चल रही हैं। होना तो ये चाहिए कि राज्य सरकार को तत्काल ही अगले कुछ दिनों तक अलवर में किसी भी प्रकार के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर रोक लगानी चाहिए। जबकि हो ये रहा है कि तबादला सीजन में हर अधिकारी-कर्मचारी मनमाफिक पोस्टिंग के लिए
जयपुर की परिक्रमा लगा रहा है। ऐसे में जिले का आपदा प्रबंधन जिनके हाथों में है वे बेपरवाह से हो गए हैं। इस बीच कुछ संस्थाओं, बिजली निगम के कर्मचारियों, ठेका कर्मचारियों, अधिकारियों और सबसे बढकऱ लाइनमैनों को दाद देनी होगी। वे दिन-रात भूख-प्यास और अपने परिवारों की परवाह किए बिना कर्तव्य पालन कर रहे हैं। प्रशासन आज भी अंग्रेजी मानसिकता में ही लगता है।
आमजन के दु:ख दर्द की अगर पड़ी होती तो कलक्टर की विदाई और स्वागत पार्टी नहीं होती। पूरा प्रशासन जिला मुख्यालय सहित गांव-ढाणियों में तूफान प्रभावित जनता के बीच होता। जबकि यहां खुद की मिजाजपुर्सी के अलावा शायद ही कुछ हो रहा है। आम नागरिक के घर में घुप अंधेरा छाया हुआ है। सारी बिजली खींचकर रात को कलक्ट्रेट को सतरंगी रोशनी में नहलाया गया। इसे ही तो जले पर नमक कहते हैं। जिलेभर के तमाम प्रशासनिक अधिकारी जनता के दु:ख दर्द को छोडकऱ मिजाजपुर्सी के इस उत्सव में मशगूल जरुर होंगे, पर आमजन के दर्द को वे इससे बढ़ा ही गए।
जनप्रतिनिधि भी दुख की इस घड़ी में जनता के साथ खड़े नजर नहीं आ रहे हैं। प्रभावशाली अधिकारी और नेता तो प्रशासन से सबसे पहले अपने लिए बिजली-पानी का जुगाड़ कराने में लगे हैं। जनता को समझ में नहीं आ रहा है कि इन हालात में क्या करें? किससे कहें? नेताओं को तो चुनावों के समय सबक सिखाने की कुंजी हाथ में है। पर अंग्रेजों के जमाने की नौकरशाही पर जनता का बस नहीं चलता है। प्रशासन जनता के जले पर नमक छिडकऩा बंद करे यही उम्मीद है।