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प्रदेश में बूंदी के बाद अलवर में रॉक पेंटिंग, अभी आमजन के लिए गुमनाम

डडीकर क्षेत्र के आसपास की पहाड़ियों में अधिकांश पत्थरों की आकृति अलग-अलग रूप लिए हुए है।

अलवरApr 13, 2024 / 11:39 am

jitendra kumar

प्रदेश में बूंदी के बाद अलवर में रॉक पेंटिंग, अभी आमजन के लिए गुमनाम

प्रदेश में बूंदी के बाद अलवर में रॉक पेंटिंग, अभी आमजन के लिए गुमनाम

सरकार अब तक नहीं देख पाई रॉक पेंटिंग की दशा, यहां बन सकता है पर्यटक क्षेत्र
प्रदेश में बूंदी के बाद अलवर में रॉक पेंटिंग, अभी आमजन के लिए गुमनाम

प्रदेश का पुरातत्व विभाग पुरानी सभ्याताओं से पर्दें को उठा रहा है, लेकिन अलवर जिल से 12 किलोमीटर दूर हाजीपुर-डडीकर की वादियों में बनी सैंकड़ों साल पुरानी रॉक-पेंटिंग से पर्दा नहीं उठा पाया है। ये रॉक पेंटिंग गुफानुमा पत्थरों में बनाए गए हैं। सबसे बड़ी बात है कि इन पेंटिंग्स को देखने के लिए बहुत कम संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।
इन रॉक पेंटिंगों का विस्तार अरावली की वादियों में 5 से 6 किलोमीटर फैला हुआ है। सरकार की देखरेख के अभाव में अब ये रॉक पेंटिंग फीकी होने लगी है। इनका गेरूवा रंग उडने लगा है। विभाग ने बूंदी जिले में इस प्रकार की रॉक पेंटिंग की खोज की और इसी प्रकार की रॉक पेंटिंग मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में भीमबैठका में है जो पूर्व मानव की गतिविधियों का केन्द्र माना जाता है, लेकिन अलवर जिले में वर्षों साल पुरानी बनी रॉक पेंटिंग से अभी लोग अछूतें है।
रॉक पेंटिंग में बने है चित्र

डडीकर क्षेत्र के आसपास की पहाड़ियों में अधिकांश पत्थरों (शिलाओं) पर अलग-अलग प्रकार की रॉक पेंटिंग उकेरी हुई है। इसमें स्वाथिक के सीधे और उल्टे चित्र, व्हेल मछली, एक सींग का बैल, हाथी, घोड़ा, शेर, मोर, मानव की आकृति आदि बनी हुई है। निजी संस्था के ओर से इसको संवारने का काम किया जा रहा है। पुरातत्वविद डॉ. नीता दुबे ने इस रॉक के पेंटिंग पर अध्ययन किया और पेंटिंग को मार्क किया। हालांकि उन्होंने बताया कि कार्बन डेटिंग पद्धति के बाद ही इनकी सही उम्र की जानकारी मिल सकती है। इस जगह पर रिसर्च की और आवश्यकता है। यहां पर भी कोई पुरानी सभ्यता मिल सकती है।

निजी संस्था ने ए से लेकर जी तक मार्क किया
एक निजी संस्था इस धरोहर को संवारने के लिए अपने स्तर पर इन पहाडियों में बनी रॉक पेंटिंग को ए से लेकर जी तक मार्क करवाया। संस्था के निर्माण बौद्धी साधू ने बताया कि ये काम इसलिए किया जा रहा है कि ताकि इनको सुरक्षित रखा जा सके और इस क्षेत्र को पयर्टक स्थल के रूप में विकसित किया जा सके। इन रॉक पेंटिंगों को एक ब्लॉक में 6 से 7 रॉक पेंटिंग है। प्रत्यके ब्लॉक में अलग-अलग प्रकार की पेंटिंग बनी हुई है। इस प्रकार की पहाड़ियों की आकृति केवल पानी और हवाओं के माध्यम से ही बनती हैं। हो सकता है ये क्षेत्र कभी पानी से लबालब हो और अब सूख गया हो।

ये क्षेत्र पर्यटक के रूप में हो सकता है विकसित

हाजीपुर-डड़ीकर का रॉक पेटिंग वाला क्षेत्र पर्यटक के रूप में विकसित हो सकता है। यह पूरा क्षेत्र सरिस्का बफर जोन में शामिल है। यहां पर पैंथर की साइटिंग होती है। यहां के रहने वाले शेरसिंह ने बताया कि यहां पर पैंथर का आना-जाना लगा रहता है और कई बार घरों के पास बने पानी पीता देखा गया है। कई बार बकरियों को भी इसने शिकार किया है। अगर पर्यटक क्षेत्र के रूप में विकसित होगा तो यहां पर्यटन का आवगमन बढ़ेगा। इससे यहां के आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। यहां के लोगों को स्वरोजगार मिल सकता है।

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