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हंडिया में लक्षागृह गंगा घाट पर किला कोट व टीले मौजूद है बारिश के कारण टीले की मिट्टी के कटान होने पर ग्रामीणों को सुरंग दिखाई दी है। क्षेत्र में सुरंग दिखने की बात आग की तरफ फैली ग्रामीण उसे देखने पहुंच रहे है। लक्षागृह पर्यटन स्थल विकास समिति के अधिकारियों की माने तो महाभारत काल के समय के कई अवशेष यहां मिले हैं। जिसे संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। केंद्र व राज्य सरकार से कई बार इसे पर्यटन स्थल बनाए जाने की मांग की जा चुकी है। कई नेताओं ने सहयोग भी दिया लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला है ।वही उपेक्षित पड़े इस पौराणिक स्थल की संरक्षित ना किए जाने पर भी लोगों में आक्रोश है। बता दें की कुंभ के दौरान भी इस स्थान को संरक्षित करने की मांग उठी थी।
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हंडिया के लक्षागृह गांव का पौराणिक महत्व है हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार यही पौराणिक स्थल है। आधुनिक इतिहासकारों सहित महाभारत की कथाओं में हंडिया लक्षागृह गांव के बारे में विद्वानों के अलग.अलग मत मिलते हैं। कहा जाता है कि कौरव पांडवों के बीच मतभेदों के चलते दुर्योधन ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए अपने राजमिस्त्री शिल्पकार त्रिलोचन द्वारा लाख का भवन निर्मित करवाया था। उसे पांडवों को भेंट देने के बाद पांडवों को उसी लाख के महल में जला देने की योजना थी। टीकरमाफी महंत हरि चैतन्य जी महाराज के मुताबिक लाख से बना हुआ घर जिसे लक्षागृह कहते हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि इसे धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए बनवाया था लेकिन विदुर की चतुराई के चलते पांडव गुप्त द्वार से भाग निकले बाहर गंगा नदी के तट पर स्थित है। उन्होंने कहा कि कई बड़े संतों ने किन कथाओं पर अपने विचार रखे हैं कहा जाता है कि लक्षागृह से निकलने के लिए सुरंग बनाई गई थी। जिससे माता कुंती और द्रोपदी के साथ इसी सुरंग से बाहर निकले थे।