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प्रयागराज

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह ने राष्ट्रपति से मांगी इच्छामृत्यु, जानिए क्यों

-लंबे समय तक की इस आंदोलन की अगुवाई

प्रयागराजOct 15, 2019 / 12:43 am

प्रसून पांडे

Richa demands euthanasia from President of India

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह ने राष्ट्रपति से मांगी इच्छामृत्यु, जानिए क्यों

प्रयागराज | इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और समाजवादी पार्टी की पूर्व प्रवक्ता ऋचा सिंह ने छात्र संघ बहाली के मुद्दे पर राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की मांग की है। ऋचा सिंह ने अपने पात्र में लिखा है की …

माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय जिसके आप विज़िटर हैं। आपको अंतिम पत्र पूरी तरह से नउम्मीद होने के बावजूद लिख कर अंतिम प्रयास कर रही अपनी बात आप तक पहुंचाने का माननीय महामहिम पिछले 4 सालों से इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रवेश प्रक्रिया में अनिमिताओंए शिक्षक भर्ती में अनिमिताओंए आर्थिक अनिमिताओं,कुलपति द्वारा पद का दुरुपयोग कर छात्राओं की अस्मिता से खिलवाड़, फीस वृद्धि,महिला छात्रावास में छात्राओं की सुरक्षा से खिलवाड़ जैसे तमाम बेहद संवेदनशील मुद्दों पर हम लड़ रहे छात्रसंघ के माध्यम से ।अपनी शैक्षणिक संस्था को बचाने की लड़ाई में न जाने कितने छात्रों का निष्कासन, निलंबन, डिग्री पर रोक और आपराधिक मुक़दमे लादकर उनके भविष्य को विश्वविद्यालय प्रशासन ने दाँव पर लगा दिया है।और अब कुलपति की तानाशाही की पराकाष्ठा का परिणाम ये है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक छात्रसंघ पर टाला लगा दिया गया है।

छात्रसंघ के स्थान पर छात्रपरिषद को लागू किया जा रहा जिसमें छात्र सीधे अपने प्रतिनिधि को चुन नहीं सकते 18 वर्ष के होने के बावजूद । छात्र परिषद के माध्यम से छात्रों के प्रत्यक्ष मताधिकार के अधिकार को छीनने का प्रयास किया जा रहा है। लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले विश्वविद्यालय द्वारा छात्रसंघ की हत्या किया जाना घोर अलोकतांत्रिक क़दम साबित होगा। हम इस अलोकतांत्रिक फ़ैसले का विरोध करते हैं। महोदय इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ की कोख से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री से लेकर स्वतंत्रता और एमरजेंसी आंदोलन के आंदोलनकारी निकले हैं जिसके गवाह महामहिम आप भी हैं। यह छात्रसंघ राजनीति की वह नर्सरी है जो एक आम छात्र. नौजवान को राजनीति में प्रतिभाग करने लोकतांत्रिक मूल्योंए अपने अधिकार के साथ 2 देश के प्रति अपने समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करने का पाठ भी पढ़ाती है।


यह छात्रसंघ ,समाज के दलित तबक़े , पिछड़े तबक़े , महिलाओं वंचित समाज के बिना राजनीतिक पृष्टभूमि के आम नौजवान को मौका देती है कि वह राजनीतिक नर्सरी से सीखते हुए देश की राजनीति में प्रतिभाग कर सके।मुझ जैसी एक आम लड़की को इस छात्रसंघ ने ही 128 साल में प्रथम निर्वाचित महिला अध्यक्ष होने का मौक़ा दिया। महामहिम आप हमारे विश्वविद्यालय परिवार के मुखिया है आज छात्रसंघ पर आपके परिवार की मुखिया होने के बावजूद ताला लग गया तो आगे से किसी आम छात्रए दलित छात्रए पिछड़े छात्र या महिला को मौका नहीं मिलेगा की वह राजनीति में प्रवेश कर सके राजनीति की नर्सरी बंजर हो जायेगी। महामहिम आज आपको यह पत्र लिखते समय मैं जीवन के सबसे निराशा के दौर में हूँ क्योंकि हमें नहीं पता कि आप तक हमारी आवाज़ पहुंचेगी भी या नहीं। हम बेहद निराश हैं क्योंकि हम छात्रों ने विश्वविद्यालय में चल रही अनियमिताओं के खिलाफ़ए विश्वविद्यालय प्रशासन के भरष्टाचार के खिलाफ़ए अपने छात्रसंघ को बचाने के लिये पिछले 60 दिनों से लगातार अहिंसात्मक ढंग से आंदोलनरत हैं, हमारे नौजवान छात्रों ने क्रमिक अनशन से होते हुए आमरण अनशन तक करते हुए अपनी जान को दांव पर लगा दिया। आमरण अनशन पर बैठे छात्रों को ख़ून की उल्टियां होने लगी पर हमारी आवाज़ न आप तक पहुँची न ही मानव संसाधन मंत्रालय तक। हमारे अहिंसात्मक आंदोलन को एक तानाशाह ने बूटों से कुचल दियाए पर केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए ज़िम्मेदार संस्थाओं की नींद नहीं टूटी।


हम आपसे जानने चाहते हैं इस देश की मुखिया से जानना चाहते हैँ की आखिर लोकतंत्र में अग़र हमें अपनी बात अहिंसात्मक ढंग से कहने का अधिकार नहीं, उसकी आवाज़ अगर अहिंसा के रास्ते से गुजरती आप तक नहीं पहुंच पाती तो आखिर किस तरीक़े से हम हम अन्याय. अव्यवस्था के खिलाफ अपना विरोध ज़ाहिर करें।पिछले 2 सालों से एक भष्ट्राचारी कुलपति की फाइल मानव संसाधन विकास मंत्रालय के चक्कर काटते हुए हमारे विश्वविद्यालय के मुखिया हमारे विज़िटर तक नहीं पहुंच पाती। कौन सा सरकारी तंत्र है जो एक अकादमिक संस्था में चल रही अनियमिताओं जो न जाने कितने छात्रों के भविष्य, शिक्षा के भविष्य के दांव पर लगे होने के बावजूद भरष्टाचारीयों को संरक्षण देता है। महामहिम महोदय पिछले 2 सालों में न जाने कितने पत्र.फ़ैक्स.मेल के माध्यम से आपसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय को बचाने की अपील हम छात्रों ने की पर अपनों बच्चों की किसी चिट्ठी का जवाब नहीं दिया। आज हम अंतिम प्रयास में आख़िरी पत्र आपको लिखकर सिर्फ़ इतना कहना चाहते हैं कि हम मातृसंस्था की कोख़ है हमारा छात्रसंघ, इस छात्रसंघ ने मुझे पहली निर्वाचित महिला अध्यक्ष होने के गौरव दिया पर मैं हमारे गौरवशाली छात्रसंघ की अंतिम महिला अध्यक्ष नहीं होना चाहती वरना जब आने वाली पीढ़ी मुझसे यह सवाल करेगी कि जब छात्रसंघ पर ताला लगाया जा रहा था तो आप क्या कर रही थीं। शायद अगर मैंने उन्हें यह समझा दिया किहमनें लोकतांत्रिक तरीक़े से हर संभव प्रयास किया पर इस महान भारत देश के लोकतंत्र के महान प्रहरियों . महामहिम राष्ट्रपति से लेकर किसी भी लोकतंत्र के सेवक ने हमारी बात नहीं सुनी तो शायद उनका लोकतंत्र पर भरोसा कमज़ोर पड़ जाये।


इसलिये मैं यह दलील जो भारत के लोकतंत्र पर युवाओं के भरोसे को कम करे यह नहीं देना चाहती लेकिन साथ ही मैं यह भी नहीं चाहती कि भविष्य में इतिहास इस बात का लांछन हम पर लगाये की हमारी मातृसंस्था की कोख़ जिससे हम निकले उसकी जब हत्या की जा रही थी तो हम ज़िंदा लाशों की तरह तमाशबीन बने रहे अतः महामहिम राष्ट्रपति महोदय से अनुरोध है कि आप हमें इच्छामृत्यु देने की अंतिम कृपा करें। क्योंकि मूल अधिकार के लिये लड़ न सकें तो मृत्य धार लेंष् यहीं अंतिम विकल्प है हम नौजवान पीढ़ी के पास। आपके उत्तर की प्रतीक्षा में।

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