1891 में केवल फ़र्स्ट क्लास के डिब्बों में शौचालय लगे, लेकिन अन्य श्रेणियों में नहीं रहता था और 56 साल तक ऐसी ही स्थिति बनी रही। एक दौर ऐसा आया कि साल 1909 में बंगाल के एक यात्री ओखिल चंद सेन के साथ ऐसी घटना हुई, जिसने ट्रेनों में शौचालय लगाने की शुरूआत करनी पड़ी। जब घटना ने मोड़ लिया तो ब्रिटिश हुकूमत ने यह फैसला लिया और ट्रेनों के सभी डिब्बों में शौचालय अनिवार्य कर दिया।
बंगाली बाबू लोटा लेकर बैठे, तभी चल दी ट्रेन बंगाल के रहने वाले ओखिल चंद्र ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। अहमदपुर (छत्तीगढ़ में) रेलवे स्टेशन पर ओखिल चंद शौच करने के लिए लोटा लेकर बाहर गए थे, तभी ट्रेन ने हार्न दिया और ट्रेन चल पड़ी। ओखिल एक हाथ में धोती, दूसरे में लोटा लेकर दाैड़े, लेकिन गिर पड़े। यात्री ओखिल की इस स्थिति पर लोग हसने लगे थे। फिर इसी घटना को लेकर ओखिल चंद्र ने धमकी भरे लहजे में साहेबगंज डिविजनल कार्यालय (वर्तमान झारखंड में) को एक पत्र भेजा। उसके बाद उन्होंने पूरे सिस्टम को सिर पर उठा लिया।
कुछ इस तरह का लिखा गया था पत्र बंगाली बाबू ने पत्र में लिखा कि मैं पैसेंजर ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन पहुंचा। कटहल खाने से मेरे पेट में बहुत सूजन आ गई थी। शौच गया था तभी ट्रेन चल पड़ी। मुझे अहमदपुर स्टेशन पर छोड़ दिया गया। यह बहुत बुरा है। यदि यात्री शौच जाता है तो ट्रेन ते गार्ड उसके लिए पांच मिनट ट्रेन का इंतजार नहीं करता। इसलिए मैं आपसे सार्वजनिक रूप से उस गार्ड पर बड़ा जुर्माना लगाने के लिए प्रार्थना करता हूं।
नहीं तो मैं अखबारों के लिए बड़ी रिपोर्ट बना रहा हूं। इसी पत्र को ब्रिटिश रेलवे ने सुझाव की तरह अमल लिया और प्रत्येक कोच में शौचालय लगाने की शुरूआत की। प्रयागराज माघ मेले में रेलवे इस पत्र की कापी प्रदर्शनी में लगाई है। एनसीआर के सीपीआरओ डा. शिवम शर्मा ने बताया कि रेलवे यात्रियों के प्रत्येक सुझाव को अमल में लाता हैं और यह पत्र उसका उदाहरण है। अगर आगे ऐसे ही कुछ समस्या मिलती है तो बदलते समय के साथ और सुधार होता रहेगा।