अवमानना याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट के 2013 में दिए गए आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने इस आदेश से प्रदेश में मस्जिदों व मंदिरों में लाउडस्पीकरों के प्रयोग व उसकी ध्वनि सीमा को लेकर एक नीति बनाने का निर्देश दिया था। याची का कहना था कि सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया। आदेश में बदायूं जिले के काकोड़ा थाने में स्थित दो मस्जिदों में एक निश्चित ध्वनि सीमा में लाउडस्पीकर लगाने की छूट दी गई थी। उसमें लाउडस्पीकर के उपयोग के संबंध में नीति तैयार करने को कहा गया था। याची की ओर से इस आदेश का उल्लंघन बताया गया था।
मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि 2013 का आदेश अंतरिम था और वह मामला अभी हाईकोर्ट में विचारधीन है, फैसला आना बाकी है। इसलिए अवमानना का मामला बनता नहीं है। कोर्ट ने पाया कि याचिका में यह कहा गया था कि राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश की आड़ में मनमाने ढंग से काम कर रही है और वह केवल अवैध लाउडस्पीकर को मस्जिद को हटा रही है और मंदिरों से नहीं हटा रही है। कोर्ट ने याची के अधिवक्ता के तर्क को अस्वीकार कर दिया।
कोर्ट ने कहा, चूंकि एक वकील से कानून के मर्यादा के भीतर बहस करने की उम्मीद की जाती है और इस तरह के तर्क को अदालत के सामने नहीं रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने इसके पहले भी मस्जिद में लाउडस्पीकर के उपयोग के संबंध में दायर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया था। मामले में कोर्ट ने उसे एक प्रायोजित मुकदमा बताया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट अपने चार मई 2022 के आदेश में यह तय कर चुका है कि मजिस्दों में लाउडस्पीकर का उपयोग मौलिक अधिकार नहीं है।