अखाड़े जब कुंभ क्षेत्र में आते हैं तो अपनी छावनी बनाते हैं। वहां धर्म ध्वजा फहराने के साथ ही पहले की व्यवस्थाएं भंग होकर सारे अधिकार चेहरा-मोहरा के पास चले जाते हैं। छावनी के केंद्र में एक मंचनुमा जगह बनाई जाती है। इस मंच पर एक तरफ चेहरा-मोहरा के लिए दो प्रधान नियुक्त किए जाते हैं। इनके अधीन चार उपप्रधान होते हैं। हर समय गादी पर एक प्रधान आवश्यक रूप से रहता है। कुंभ के दौरान छावनी के नियमो का पालन अखाड़े के सभी साधुओं को करना पड़ता है। अगर कोई नियम नहीं मानता है तो उसे चेहरे मोहरे पर बैठा प्रधान दंड दे सकता है। छावनी के नियम इतने कठिन होते हैं कि अगर मंच पर गलत तरीके से चढ़ जाता है तो भी प्रधान उसे दंड दे सकते हैं।
कुंभ के दौरान नए साधु बनाए जाते हैं और कई साधुओं की शिकायतों का निवारण भी होता है। छावनी में बनाई गई कोर्ट का नाम चेहरा-मोहरा रखने के पीछे का कारण महानिर्वाणी अखाड़े के अवेशपुरी महाराज बताते हैं कि हर व्यक्ति का चेहरा यानी उसका व्यक्तित्व, बॉडी लैंग्वेज आदि देख कर निर्णय लिया जाता है। वहीं मोहरे का मतलब है, डाक्युमेंटेशन। यानी कौन संत कहां से आया है। उसकी पदमुद्रा क्या है। यह सब भी कागज देखकर निर्णय लिया जाता है।