patrika.com पर प्रस्तुत है चंद्रशेखर आजाद के ऐसे किस्से जो देशवासियों का सीना गर्व से फुला देते हैं…।
चंद्रशेखर को आजाद ही क्यों कहते हैं
चंद्रशेखर को आजाद कहने की खास वजह भी है। जब वे 15 साल के थे, तब चंद्रशेखर को न्यायाधीश के सामने पेश किया गया तो उन्होंने कहा- मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है। न्यायाधीश अपने सामने इतनी बेबाकी से जवाब देने वाले चंद्रशेखर पर भड़क गए और उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुना दी गई। हर कोड़े के साथ खाल उधड़ती रही और उनके मुंह से आह की जगह ‘वंदमातरम’ निकलता रहा। यहीं से उनका नाम ‘आजाद’ पड़ गया। वे मरते दम तक आजाद ही रहे।
आखिरी गोली खुद को मारी
27 फरवरी 1931 का दिन था, जगह थी इलाहाबाद का अल्फ्रेड पार्क। यह दिन चंद्रशेखर का आखिरी दिन था। अंग्रेजों से घिर चुके आजाद अकेले ही मुकाबला कर रहे थे। 15 सिपाहियों का सफाया कर चुके थे। एक शपथ के कारण आजाद ने उस समय अपनी पिस्तौल से खुद को गोली मार ली, जब उनके पास लड़के हुए आखरी गोली बची थी। उन्होंने कहा था कि मैं आजाद हूं, और मरते दम तक आजाद रहूंगा।
भाबरा कस्बे का नाम अब चंद्रशेखर आजाद नगर
23 जुलाई 1906 में मध्यप्रदेश भाबरा नामक गांव में जन्मे चंद्रशेखर तिवारी ‘आजाद’ के इस कस्बे का नाम भी चंद्रशेखर आजाद नगर (Chandrashekhar Azad nagar) हो गया है। अलीराजपुर जिले (alirajpur district) में स्थित भाभरा का नाम 2011 में चंद्रशेखर आजाद कर दिया गया था। 15 हजार की आबादी वाले इस कस्बे के हर घर में और हर दुकान में आजाद की तस्वीर लगी मिल जाएगी। हालांकि लोग अब भी चंद्रशेखर आजाद नगर के साथ ही भाबरा भी लिखते हैं। महज 14 साल इस गांव में रहने के बाद आजाद वाराणसी की संस्कृत विद्यापीठ में पढ़ने चले गए। वहीं से वे क्रांतिकारी बनकर स्वतंत्रता के आंदोलन में कूद पड़े थे।
पहली बार कोई पीएम पहुंचा था भाबरा
पहली बार 9 अगस्त 2016 को कोई प्रधानमंत्री भाबरा गांव में पहुंचा था और चंद्रशेखर आजाद को याद किया था। तीन साल पहले विश्व आदिवासी दिवस के दिन वहां प्रधानमंत्री पहुंचे थे। इससे एक दशक पहले शिवराज सिंह चौहा भी इस गांव में पहुंचे थे।
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पूरा जीवन आजादी की लड़ाई में कर दिया कुर्बान
आजाद का का पूरा जीवन आजादी की लड़ाई में कुर्बान हो गया। कम उम्र में चंद्रशेखर हिन्दुस्तान की आजादी के सहभागी बने थे। 1922 में चौरी-चौरा की घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो कई नवयुवकों की तरह आजाद क भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया था। इसके बाद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, शचींद्र नाथ सान्याल, योगेशचंद्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रातिकारियों को लेकर एक संगठन बनाया, जिसका नाम था हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन। चंद्रशेखर भी इसी संगठन में शामिल हो गए थे।
काकोरी कांडः आजाद काकोरी कांड में भी शामिल हुए थे। उनके साथ 10 क्रांतिकारियों ने ट्रेन लटी थी, जिसमें अंग्रेजों का पैसा ले जाया जा रहा था। यह सारे रुपए लूट लिए गए। इनके पाच साथी अंग्रेजों के हाथ लग गए और उन्हें गोली मार दी गई। आजाद यहां से चकमा देकर भाग निकले थे।
शिवराज ने कहा यह धरती कभी उऋण नहीं होगी
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को अपने निवास पर और राजधानी के गीतांजलि चौराहा स्थित चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। उन्होंने इस मौके पर कहा कि मां भारती के चरणों से परतंत्रता की बेड़ियाँ तोड़ने के लिए प्राणोत्सर्ग कर देने वाले वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर भोपाल के गीतांजलि चौराहे स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नमन किया। राष्ट्र की सेवा के लिए मर मिटने वाले आप जैसे वीरों के ऋण से यह धरती कभी उऋण न हो सकेगी। इससे पहले शिवराज ने अपने निवास पर भी चंद्रशेखर आजाद और बाल गंगाधर तिलक की जयती पर उनकी तस्वीरों पर माल्यार्पण किया। उन्होंने कहा कि महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी #चंद्रशेखर_आजाद और लोकमान्य_बाल_गंगाधर_तिलक की जयंती पर उनके चरणों में नमन किया। आइये, हम सब मां भारती के सच्चे सपूतों की दिखाई राह पर चलकर राष्ट्र के नवनिर्माण में योगदान देने का संकल्प लें और इसके लिए हरसंभव प्रयास करें।
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मोदी और शाह ने किया नमन
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह ने चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर उन्हें याद किया। गृहमंत्री अमित शाह ने अपने ट्वीट संदेश में कहा है कि चंद्रशेखर आजाद का शौर्य ऐसा था कि अंग्रेज भी उनके सामने नतमस्तक हो जाते थे। आजाद ने बचपन से ही आजाद भारत के विचार को जिया व चरितार्थ किया और अंतिम सांस तक आजाद रहे। उनके बलिदान ने स्वाधीनता की जो लौ जगाई वो आज हर भारतवासी के ह्रदय में देशभक्ति की अमर ज्वाला बन धधक रही है।