57 साल पुराने अपने ही फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर साल 1967 में ‘अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले को पलट दिया है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा है “अगर कोई संस्थान कानून के तहत बना है तो भी वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है।” शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह आदेश जारी किया। इसके बाद यह मामला नियमित पीठ के पास भेज दिया गया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा या नहीं, अब इसका फैसला नियमित पीठ करेगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी नहीं माना था अल्पसंख्यक संस्थान
दरअसल, साल 2006 में
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। इसके बाद इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की पीठ ने इस मामले में सुनवाई के बाद साल 2019 में इसे सात जजों की पीठ के पास भेज दिया था। जहां मामले पर सुनवाई शुरू हुई तो यह सवाल उठा था कि क्या कोई विश्वविद्यालय, जिसका प्रशासन सरकार द्वारा किया जा रहा है, क्या वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की पीठ इसी मामले की सुनवाई कर रही थी।
एक फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला
सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मामले में एक फरवरी को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले का फैसला सुनाया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 के फैसले को पलटते हुए स्पष्ट किया कि कानून द्वारा बनाए गए संस्थान को भी अल्पसंख्यक दर्जा मिल सकता है। इसके बाद इस मामले को नियमित पीठ के पास भेज दिया गया। नियमित पीठ इसका अंतिम फैसला सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 में खारिज किया था अल्पसंख्यक दर्जा
अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने साल 1967 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा खारिज कर दिया था। इसके बाद साल 1981 में तत्कालीन सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा फिर से बरकरार कर दिया था। इससे पहले साल 1967 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था “जो संस्थान कानून के मुताबिक स्थापित किया गया है, वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा नहीं कर सकता है।”
इन सात जजों ने अनुच्छेद 30 के मुताबिक पलटा फैसला
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक संस्थान होने के मामले में पांच साल तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की सात जजों वाली पीठ ने अपने ही फैसले को पलट दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के पक्ष में तर्क दिए। पीठ में शामिल जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने विपरीत तर्क दिए। इसके बाद 4-3 के बहुमत से अल्पसंख्यक संस्थान होने का आदेश जारी किया गया। फिलहाल मामला नियमित पीठ के पास भेजा गया है।
अलीगढ़ विश्वविद्यालय के छात्रों ने ‘सुप्रीम’ फैसले पर जताई खुशी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में खुशी का माहौल है। विश्वविद्यालय के एक छात्र ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा “यह एक अल्पसंख्यक संस्थान है और हम इस फैसले का स्वागत करते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की इमारत को देखिए। ये कह रही है कि एएमयू एक अल्पसंख्यक संस्थान है। हम वक़्त के साथ इसे साबित भी कर देंगे। हमें सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से इंसाफ़ की उम्मीद थी। हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं।” वहीं एक और छात्र ने कहा “हमारे लिए यह ऐतिहासक पल था। हमें इसका बहुत दिन से इंतज़ार है। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है। हम उसका स्वागत करते हैं। यूनिवर्सिटी की हर एक ईंट यह बताती है कि यह एक अल्पसंख्यक संस्थान है।”
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर आए फैसले को लेकर शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता और महासचिव यासूब अब्बास ने कहा, “अल्पसंख्यक दर्जे की अपनी अहमियत और ताकत होती है क्योंकि उसमें किसी की दखलंदाजी नहीं होती है। जहां तक तीन जजों की बेंच का सवाल है तो मेरे हिसाब से वह बहुत अच्छा फैसला लेगी और वह भी अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखने का फैसला ही करेगी।”