उच्च, तकनीकी, मेडिकल और अन्य विश्वविद्यालयों-कॉलेजों और संस्थानों में विभागवार शिक्षकों को चक्रानुसार विभागाध्यक्ष बनाया जाता है। यह अवधि दो से तीन वर्ष तक हो सकती है। ताकि सभी शिक्षकों को विभागाध्यक्ष बनाने का अवसर मिले।
साथ ही विभाग किसी एक शिक्षक की रीति-नीति, योजना के बजाय सामूहिक अवधारणा पर चले। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में कला, वाणिज्य, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, विधि, प्रबंध अध्ययन संकाय के संचालित हैं। यहां शुरुआत से चक्रानुसार विभागाध्यक्ष नहीं बनाए जा रहे हैं।
अटक रही शिक्षकों की भर्ती पिछले 31 साल से शिक्षकों की भर्तियां बार-बार अटक रही हैं। विश्वविद्यालय के पिछड़ेपन का यह सबसे बड़ा कारण है। केवल यहां जूलॉजी और बॉटनी विभाग में प्रोफेसर की भर्ती हुई है। दो साल से 20 शिक्षकों की भर्तियां अटकी हुई है। जबकि आवेदन पत्र लिए जा चुके हैं. शिक्षकों की संख्या बढऩे पर ही विभागाध्यक्ष बनाए जा सकते हैं।
ये है यूजीसी के नियम यूजीसी के नियमानुसार विश्वविद्यालयों में विभागवार एक प्रोफेसर, 2 रीडर और चार लेक्चरर्स होने जरूरी हैं। इस लिहाज से विश्वविद्यालय के करीब 25 विभागों में 250 शिक्षक होने चाहिए। लेकिन इस नियम पर विश्वविद्यालय खरा नहीं उतरता है। यूजीसी के नियमानुसार किसी भी विश्वविद्यालय में न्यूनतम 75 शिक्षक होने जरूरी हैं। इससे कम शिक्षक होने पर ऐसे विश्वविद्यालय में शैक्षिक विभागों को चलने योग्य नहीं माना जाता है। लेकिन महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, सरकार और राजभवन आंखें मूंदे बैठे हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद मिलता अवसर विश्वविद्यालय में प्रबंध अध्ययन, प्योर एन्ड एप्लाइड केमिस्ट्री, फूड एन्ड न्यूट्रिशियन तथा पर्यावरण विज्ञान विभाग में दो से चार शिक्षक हैं। इन विभागों में भी चक्रानुसार विभागाध्यक्ष नहीं बनाए जा रहे। यहां विभागाध्यक्षों की सेवानिवृत्ति के बाद ही अन्य शिक्षकों को अवसर मिला। यह परम्परा पिछले बीस साल से जारी है।
इन विभागों में नहीं शिक्षक
हिन्दी, एलएलएम, बीएड, पत्रकारिता विभाग में तो स्थाई शिक्षक ही नहीं हैं। यह विभाग ऐसे प्रोफेसर के हवाले हैं, जिनका मूल विषय से कोई संबंध नहीं है। केवल विभाग चलाए रखने की गरज से दूसरे शिक्षक यहां कार्यरत हैं। विद्यार्थियों की कक्षाएं गेस्ट फेकल्टी ही लेती हैं।