scriptदूसरों के खून के संग जिंदगी की जंग लड़ रही जुड़वां बहनें, सरकार बढ़ाए हाथ तो बच सकती है जिंदगी | Twin sisters are fighting for their lives with the blood of others, if the government extends a helping hand, their lives can be saved | Patrika News
अजमेर

दूसरों के खून के संग जिंदगी की जंग लड़ रही जुड़वां बहनें, सरकार बढ़ाए हाथ तो बच सकती है जिंदगी

बचपन में ही हंसी ठिठोली करती जुड़वां बहनें जिंदगी के लिए जंग लड़ रही हैं। उन्हें भी नहीं पता कि किस बीमारी ने उन्हें घेरा है। मगर जब हर महीने अस्पताल में उन्हें ब्लड चढ़ाया जाता है तो उनके चेहरे की रौनक फीकी पड़ जाती है।

अजमेरJun 30, 2024 / 10:18 am

Akshita Deora

चन्द्र प्रकाश जोशी

बचपन में ही हंसी ठिठोली करती जुड़वां बहनें जिंदगी के लिए जंग लड़ रही हैं। उन्हें भी नहीं पता कि किस बीमारी ने उन्हें घेरा है। मगर जब हर महीने अस्पताल में उन्हें ब्लड चढ़ाया जाता है तो उनके चेहरे की रौनक फीकी पड़ जाती है। चिंता तो माता-पिता की है कि उन्हें खून की व्यवस्था करनी है।

थैलेसीमिया पीड़ित जुड़वा बहनों की पीड़ा, माता-पिता भी लोगों से कराते हैं रक्तदान

अजमेर रीजन थैलेसीमिया सोसायटी में पंजीकृत जुड़वा बहनें खनक और खनिका को देख कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि वे थैलेसीमिया रोग से पीड़ित हैं। जन्म से ही शरीर में खून नहीं बनने की वजह से हर माह 15 से 20 दिन में खून चढ़वाना पड़ता है। जब तक जिंदा हैं दूसरों के खून से ही जिंदा हैं। अब शरीर में खून बनाने की क्षमता विकसित करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक उनकी जिंदगी को रोशन कर सकती है।
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ब्रोनमेरो ट्रांसप्लांट अगर हो जाता है तो इन दोनों जुड़वां बहनों को नई जिंदगी मिल सकती है। मूल रूप से परबतसर निवासी जुड़वा बहनों के पिता पेशे से शिक्षक हैं। उन्होंने बताया कि दोनों बेटियों की दिनभर मस्ती व हंसी ठिठोली से लगता ही नहीं कि वे बीमार हैं, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी उन्हें कम समय में खून की जरूरत पड़ेगी। वर्तमान में अजमेर रीजन थैलेसीमिया सोसायटी के माध्यम से आयोजित स्वैच्छिक रक्तदान शिविरों में वे अपने परिचितों से रक्तदान करवाते हैं।

बोनमेरो ट्रांसप्लान्ट के लिए एचएलए मिलान जरूरी

बच्चों का बोनमेरो ट्रांसप्लांट करने के लिए माता-पिता, भाई-बहन का एचएलए होना जरूरी है। इसके बाद ही बोनमेरो ट्रांसप्लांट संभव होता है। हाल ही में यह टेस्ट किया गया है। करीब छह माह में जर्मनी से रिपोर्ट आने के बाद ट्रांसप्लांट की कवायद शुरू होगी। बोनमेरो ट्रांसप्लांट में करीब 20 लाख रुपए का खर्च आता है, लेकिन अब प्रधानमंत्री कोष, मुयमंत्री सहायता कोष एवं अन्य दो निजी ट्रस्ट के माध्यम से थैलेसीमिक पीड़ित बच्चों के बोनमेरो ट्रांसप्लांट नि:शुल्क होने की संभावना है।

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