सिन्धी समाज के कोई भी धार्मिक आयोजन हो यहां दरबार में विशेष पूजा अर्चना के बाद शुरू होते हैं। यहां के नसरपुर दरबार में वही मान्यता है जो सिन्ध के नसरपुर दरबार की है। जयराम मघनानी ने बताया कि उनके पिता मंगलचंद मघनानी व उनके मामा टेऊंराम 19 अक्टूबर 1947 में जब सिन्ध से आए थे तब नसरपुर दरबार की ज्योत लेकर रवाना हुए। पूरे रास्ते कितनी ही हवा चली, भागदौड़ हुई लेकिन ज्योत अखंड प्रज्वलित रही। अजमेर में नसरपुर दरबार में मूलचंद मघनानी के निधन पर उनकी पत्नी परमेश्वरी देवी एवं इनके निधन के बाद उनके पुत्र राजू मघनानी गद्दीनशीन रहे, इनके निधन के बाद अब उनकी पत्नी कांता मघनानी गद्दीनशीन हैं। जयराम मघनानी ने बताया कि सात भाइयों में अब छह भाई हैं।
यह है मान्यता सिन्धी समाज में मान्यता है कि अगर किसी बच्चे का मुंडन करवाना होता है तो नसरपुर दरबार में होता है। शादी में नसरपुर दरबार में पहला निमंत्रण दिया जाता है। बहराणा साहिब का भी आयोजन होता है। यहां दोनों नवरात्र की दूज को बड़ा मेला भरता है। भजन-कीर्तन होते हैं। 16 जुलाई से 26 अगस्त तक 40 दिन तक शाम को भजन कीर्तन, दोनों समय आरती एवं भंडारे का आयोजन होता है।
ज्योत की खासियत अभी भी ज्योत प्रज्वलित है। इसमें रूई की बाट ऐसी है कि एक माह तक चलती है। बाट जरूरत पर बदली जाती है। श्रद्धालु भी तेल आदि की मदद करते हैं। ज्योत के लिए तेल आदि की कोई कमी नहीं है। यही ज्योत चेटीचंड की शोभायात्रा में सबसे आगे रखी जाती है।