सुबह 1.30 घंटे में कम मतदान (low vote caste) से छात्रनेताओं की नींद उड़ चुकी है। मदस विश्वविद्यालय सहित जिले के सभी कॉलेज में एनएसयूआई-अभाविप में कड़ी टक्कर है। कहीं-कहीं निर्दलीय प्रत्याशी से भी करीबी मुकाबला है। अधिकतर संस्थाओं (institutes)में छात्र संगठनों के कई कार्यकर्ताओं ने बागियों-निर्दलीयों को अंदरूनी समर्थन दिया है।
प्रदेश में इस साल कई नगर परिषद (municipility), नगर निगम (nagar nigam) और अगले साल पंचायत चुनाव (panchayat election )चुनाव होने हैं। छात्रसंघ चुनाव (chatr sangh chunav)में कम मतदान युवाओं की चुनावों में अरुचि का संकेत है। इसको देखते हुए कांग्रेस और भाजपा को इन चुनावों में ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है। ताकि अधिकाधिक मतदान (vote percentage) हो सके। मालूम हो कि लोकसभा, विधानसभा, नगर निकाय, पंचायत और अन्य चुनाव में युवा मतदाताओं की तादाद ज्यादा रहती है।
छात्रसंघ चुनाव बीते सात-आठ साल से जातीय आधार (cate based eelction)हावी हो रहा है। एसपीसी-जीसीए दयानंद कॉलेज, राजकीय कन्या महाविद्यालय और एमडीएस विश्वविद्यालय में नागौर, कुचामन, मेड़ता, रेण, डीडवाना और अन्य इलाकों के विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है। यही वजह है कि छात्र संगठन प्रतिवर्ष कुछेक समुदाय के प्रत्याशियों को ही मैदान में उतार रहे हैं। यद्यपि दलित वर्ग और ओबीसी विद्यार्थी भी खासी तादाद में हैं, पर इन्हें कार्यकारिणी के अन्य पदों पर टिकट दिए जाते हैं।