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रक्षाबंधन: आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुआ था भाई, अब बहनें बांधती है प्रतिमा पर राखी

बीस साल से शहीद भाई की प्रतिमा पर राखी सूत्र बांधती है बहने

अजमेरAug 15, 2019 / 01:19 pm

Amit

sister tie rakhi to his brothers statue who sacrifices for country

रक्षाबंधन: आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुआ था भाई, अब बहनें बांधती है प्रतिमा पर राखी

अमित काकड़ा
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
(Madanganj, Kishangarh) मदनगंज-किशनगढ़.

कहते है भाई बहन का रिश्ता अमर होता है। (Rakhi2019) राखी केवल धाखा मात्र नहीं यह भाई-बहन के प्यार के बंधन की अटूट डोर है। जो हमेशा बंधी रहती है। इस रिश्ते की महक कभी कम नहीं होती है। बहनें देश की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले अपने शहीद भाई की प्रतिमा के राखी बांधकर इस रिश्ते को निभा रही है। उससे खुद और देश की रक्षा का वचन अनमोल वचन ले रही है। बीस साल बाद भी भाई बहनों की यादों में जिंदा है। संयोग की बात यह भी है कि बीस साल बाद इस बार फिर रक्षाबंधन का पर्व 15 अगस्त को है। उनके भाई की शहादत के बाद भी पहली राखी भी 15 अगस्त को ही आई थी।
ज्ञाना गुर्जर ने बताया कि उसके पांच भाई थे। इनमें से सेना (Indian Army) में कार्यरत दयालचंद का शहीद हो गया। छुट्टियों में गांव आने पर दयालराम उससे जरूर मिलने आता था। बहनों में सबसे छोटी होने के कारण दयालचंद का उससे खासा लगाव था। ड्यूटी पर वापस लौटने के पहले भी वह बहनों से मिलता था। दयालचंद जब ड्यूटी पर रहता तब भी वह उसे डाक से राखी जरूर भेजती थी। लेकिन एक दिन वह आतंकियों से लड़ता-लड़ता शहीद हो गया। शहीद होने के बाद बहनों को ख्याल आया अब वे अपने भाई के राखी कैसे बांधेंगी। बाद में बुहारू में दयालचंद की प्रतिमा की स्थापना की गई।
भाई को याद करते हुए भावुक हुई बहन
भाई की शहादत के बाद आए पहले रक्षाबंधन से तीनों बहनों से शहीद भाई की प्रतिमा से राखी बांधना प्रारंभ किया। ज्ञाना ने अपने भाई की प्रतिमा के राखी बांधना प्रारंभ किया। शहीद की बहन ज्ञाना गुर्जर ने बताया कि शहीद अमर होते है। बातचीत के दौरान वे भावुक हो गई और आंखों से आंसू छलक पड़े।
सबसे पहले शहीद की प्रतिमा पर राखी
उन्होंने बताया कि राखी के दिन वह सबसे पहले बहने शहीद भाई दयालचंद की प्रतिमा के राखी बांधती है। उसके बाद दूसरे भाईयों के राखियां बांधती है। उन्होंने बताया कि भाई की शहादत के 20 बाद भी आज तक ऐसी कोई राखी नहीं रही जब मैने अपने भाई की प्रतिमा के राखी नहीं बांधी। बाकी बहनें रतन और मदन भी रक्षाबंधन पर जब आती है। तो सबसे पहले शहीद दयालचंद की प्रतिमा पर राखी बांधती है। परिवार की अन्य बहनें भी ऐसा ही करती है। पहले दयालचंद की प्रतिमा के राखी बांधती है उसके बाद अन्य भाईयों से राखियां बांधती है। ज्ञाना देवी ने बताया कि जब भाई शहीद हुआ था। उस वर्ष भी राखी 15 अगस्त को थी। 20 साल बाद इस वर्ष भी राखी 15 अगस्त को है। उसे रह रहकर भाई की बहुत याद आ रही है।
बच्चों को किया प्रेरित
ज्ञाना गुर्जर ने अपने बच्चों को भी देश के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया। बेटे को अपने पीहर में रखकर पढ़ाया जहां स्कूल भी शहीद दयालचंद के नाम से है। ज्ञाना के बेटे नंदराम ने भी फौज में भर्ती होने की तैयारी शुरू की। स्कूल से आने के बाद वह घंटोंं दौड़ का अभ्यास करता है। उसका फिजीकल क्लीयर भी हो चुका है। उनकी बेटी पिंकी भी पुलिस में भर्ती होकर देशसेवा करना चाहती है।
जख्मी होने के बाद भी मैदान में डटे रहे थे दयालचंद
जम्मू-कश्मीर (J&K) में तैनात किशनगढ़ (Kishangarh) पास स्थित बुहारू गांव में रहने वाले आर्मी के जवान दयालचंद गुर्जर की 23 मार्च 2000 को बारामुला में आतंकियों से मुठभेड़ हो गई थी। शहीद के भाई विश्राम गुर्जर ने बताया कि बारामुला में एक मस्जिद में आतंकी छुपे थे। इस दौरान उनकी आतंकियों से मुठभेड़ हो गई। इस दौरान दोनो ओर से जमकर फायरिंग हुई। कई आतंकी ढेर हो गए। भीषण फायरिंग के दौरान दयालचंद को भी हाथ-जांघ सहित अन्य हिस्सों पर सात गोलियां लग गई। जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए। लेकिन उन्होंने अंत तक मोर्चा संभाले रखा। मुठभेड़ खत्म होने के बाद अस्पताल जाने के दौरान वे शहीद हो गए। दयालचंद की शहादत के समाचार सुनकर परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया।

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