छात्रों को जज्बे और हौसले की सीख देते हुए यादव ने कहा कि करगिल में दूसरे बंकर (bunkers) के समीप दुश्मन सैनिकों पर गोलियां बरसा (gun firing) रहे थे। मैंने ग्रेनेड (granade) फेंककर पाक सैनिकों को मौत की नींद सुलाया। हाथ टूटने और शरीर में 15 गोलियां लगने के बावजूद मैंने दुश्मन को ललकारा। टूटे हाथ को बेल्ट (belt) से बांधकर अंतिम बंकर पर फतह पाई। जीवन में मजबूत इरादा और दृढ़ इच्छा शक्ति ही हमें आगे बढ़ाती है।
यादव ने छात्रों को बताया कि प्रत्येक भारतीय को मातृभूमि (mother land) की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए। खासतौर पर छात्रों (students) और युवाओं (youth) के लिए सैन्य सेवा बेहतरीन अवसर है। मालूम हो कि यादव सेना के 18 ग्रेनेडियर्स (18 granadiers) में कार्यरत थे। उनके पिता करण सिंह यादव भी कुमाऊं रेजीमेंट (kumaun regiment) में सेवाएं दे चुके हैं। योगेंद्र ने 4 जुलाई 1999 को करगिल युद्ध के दौरान अदम्य साहस दिखाया था। इनकी शूरवीरता पर सरकार ने परमवीर चक्र से नवाजा था।