राजस्थान में ऐतिहासिक होली में कोड़ामार होली शुमार है। बगड़वातों की धरा और अजमेर जिले के भिनाय उपखण्ड मुख्यालय पर धुलण्डी के दिन सुबह सब एक दूसरे के गुलाल अबीर लगाकर होली खेलते हैं। इसके बाद सब अपने घरों को चले जाते हैं। शाम करीब 4 बजे भिनाय के बड़ा बाजार में भैंरू की स्थापना के साथ कोड़ामार होली का आह्वान होता है। ढोल की थाप एवं बांक्यां बजाकर माहौल को जोशीला बना देते हैं।
इसके साथ ही लोग घरों से निकल कर बड़े बाजार में एकत्र होना शुरू हो जाते हैं। कोई दुकानों की छतों पर तो कोई मकानों की छतों पर देखने के लिए जगह रोक लेते हैं। पूरा बाजार खचाखच भर जाता है। इससे पूर्व रस्से से तैयार किए गए कोड़ों को पानी में भिगोने के लिए छोड़ दिया जाता है।
जो भी कोड़ामार दंगल में खेलना चाहते हैं वे सिर पर साफा (ढाटा) बांधते हैं। गांव के दो हिस्सों में बंटे ग्रामीण एक दूसरे की टीम में उतरते हैं और फिर कोड़ामार होली का दंगल शुरू होता है। हर साल नए खिलाड़ी तैयार भी होते हैं तो पुराने भी दंगल में अपना जोश दिखाते हैं।
निर्धारित जगह बाजार का मापा पर एक-दूसरे को मारते हुए ले जाते हैंं। दंगल खत्म होने पर सब एक दूसरे के गले मिलते हैं। अगर किसी को चोट भी लग जाती है तो कोई नाराजगी, शिकवा-शिकायत नहीं होती है। फिर दूसरे और तीसरे दिन भी इसी तरह शाम को दंगल होता है।