पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कोरोना की दूसरी लहर में लूमों के लॉकडाउन और फिर अनलॉक के बाद पावरलूम शुरू तो हो गई, लेकिन फैक्ट्रियों में अभी भी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं हो पा रहा है। राजस्थान पावरलूम एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष गोपाल अग्रवाल ने बताया कि अभी 60 प्रतिशत कपड़े का ही उत्पादन हो रहा है। कई यूनिटों में 12 घंटे तो कई में 16 और कुछेक में 24 घंटे उत्पादन हो रहा है। लम्बे समय तक लॉकडाउन रहने और फिर अनलॉक में फैक्ट्रियों के खुलने पर ज्यादातार पार्टियों से पेमेंट आने में बहुत समय लग रहा है।
अर्थ व्यवस्था गड़बड़ाई अप्रेल एवं इससे पहले पहले भेजे गए माल (तैयार कपड़ा) का पेमेंट अब कुछ जगह से धीरे-धीरे आना शुरू हुआ है और कई जगह से अभी भी नहीं आ रहा है। वहीं अभी अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटी है। इसलिए कपड़े की मांग भी कम बताई जा रही है। इसके कारण पावरलूम लूमें अभी पूरी क्षमता से संचालित नहीं हो पा रही हैं।
बारिश में कम रहेगा मार्केट उद्यमियों ने बताया कि आने वाले कुछ दिनों में बारिश होने की उम्मीद है। बारिश के सीजन में कपड़े की मांग भी घटती है। साथ ही पावरलूम में तैयार हुए कपड़े की रंगाई और छपाई का कार्य भी बाधित होता है। यही वजह है कि बारिश में पावरलूम के कपड़े की डिमांड कम रहती है और इससे उत्पादन कार्य भी कम हो जाता है। किशनगढ़ में बनने वाले कपड़े में से 70 प्रतिशत जयपुर और 20 प्रतिशत अहमदाबाद जाता है और इन दोनों से बारिश के सीजन में कपड़े की डिमांड कम रहती है।
बिजली की दरों ने बढ़ाई मुसीबत पावरलूम उद्यमियों ने बताया कि पावरलूम उद्योग की सबसे बड़ी समस्या महंगी बिजली दरें हैं। अन्य राज्यों में पावरलूम यूनिटों को वहां की सरकारों की ओर से कम दरों पर बिजली उपलब्ध कराई जाती है। राजस्थान में पावरलूम उद्यमियों को बिजली की दर लगभग 8 रुपए 50 पैसे प्रति यूनिट आती है। इससे उत्पादन लागत बहुत अधिक बढ़ जाती है इससे देश की अन्य कपड़ा मंडियों में किशनगढ़ की पावरलूम फैक्ट्रियों में तैयार कपड़ा टिक नहीं पाता है।
मार्जिन कम होने से छोटे व्यापारी मांग अधिक होने पर ही फैक्ट्रियां चलाते हैं। शेष समय वह लूमों को बंद कर देते हैं। महाराष्ट्र, तमिलनाडू आदि राज्यों में बिजली सस्ती होने विशेषकर टैक्सटाइल क्षेत्र के लिए होने से उनके कपड़े की लागत कम पड़ती है, जबकि राजस्थान में बनने वाला कपड़ा महंगा पड़ता है