सूर्योदय से सूर्यास्त उपरांत विद्यमान होने से अमावस्या साकल्या पादित तिथि होगी। यह संपूर्ण रात्रि और अगले दिन सूर्योदय तक रहेगी। प्रदोषकाल, वृषभ लग्न, निशीथ में सिंह लग्न में पूजन के प्रशस्त होगी। पितृकार्य और देव कार्य 31 अक्टूबर को होगा। दीपावली एक दिन पहले मनाने पर अभ्यंग स्नान, पितृ, देव पूजन और अन्य कर्म लक्ष्मी पूजन के बाद होंगे। यह शास्त्रों के विपरीत है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार, दो दिन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या होने तथा दूसरे दिन 1 घटी से अधिक प्रदोष हो तो उसी दिन दीपावली मनाना श्रेष्ठ है। इस दिन सूर्योदय में व्याप्त होकर सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में एक घटी से अधिक विद्यमान है। निर्णय सिंधु के द्वितीय परिच्छेद के अनुसार अमावस्या दोनों ही दिन प्रदोष व्यापिनी हो तो अगले दिन ही पूजन किया जाना चाहिए। देश के 100 से अधिक पंचांगों में 1 नवम्बर को ही दीपावली बताई गई है। कांची पीठाधीश्वर शंकराचार्य विजेंद्र सरस्वती ने भी इसका समर्थन किया है।