एक कमरे में चल रहे इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग से शिक्षक की व्यवस्था भी अपने स्तर पर कर ली। बच्चों को बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं भले ही नहीं मिल पा रही हैं इसके बावजूद बिना किसी हीन भावना के बच्चे पूरी लगन से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
मूलत: घुमक्कड़ कहे जाने वाले कालबेलिया समाज के लोग नृत्य कला के लिए विख्यात हैं। लेकिन समय के साथ-साथ इस समाज के लोग भी विकास की मुख्य धारा में शामिल होना चाहते हैं। खानाबदोश जीवन छोड़कर ये भी स्थायी रूप से एक जगह बसना चाहते हैं। समाज के लोगों ने बताया कि वह अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देकर अच्छा इंसान बनाना चाहते हैं ताकि उनके बच्चे भी उच्च जीवन स्तर जी सकें।
कालबेलिया परिवार के बच्चों को सरकारी व निजी विद्यालयों में दाखिला तो मिल जाता है लेकिन बाद में वे अपने सहपाठियों के बीच असहज महसूस करते हैं। असहजता का एकमात्र कारण समय के अनुरूप इनका रहन-सहन व पहनावा न होने के साथ ही पारिवारिक स्थिति कमजोर होना माना जाता है। साथ ही इन परिवार के बच्चों को स्कूल में छूआछूत का शिकार भी होना पड़ता है। इससे उनमें हीनभावना पनपने लगती है।
बनाई अपनी पाठशाला बच्चों में पनपती हीन भावना की स्थिति के कारण पुष्कर में रह रहे कालबेलिया समाज के लोगों ने मिलकर आपसी सहयोग से अपने रेतीले धोरों में ही एक छोटे से कमरे में विद्यालय का निर्माण कर लिया है।
वहीं रह रहे साधुनाथ ने बताया कि उनके बच्चों की किसी के तानों या उलाहनों का शिकार न होना पड़े इसलिए उन्होंने पाठशाला बनवाई जिसमें 70 बच्चे एक साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं। पुष्कर से दो शिक्षक आकर बच्चों को शिक्षा देते हैं। इसकी एवज में उनको समाज के लोग मिलकर तनख्वाह देते हैं।
व्यक्तित्व निर्माण भी कालबेलिया समाज के बच्चे भी अन्य बच्चों के समान उच्च शिक्षा प्राप्त कर सभी बराबर खड़े हो सके इसलिए इन बच्चों को पढ़ाई के साथ ही व्यक्तित्व निर्माण व कला संस्कृति का पाठ भी पढ़ाया जाता है।