राजस्थान के इस राज परिवार के शिव मंदिर में लगा रहता हैं भक्तों का तांता
जितनी बार पूजा, उतनी बार शृंगार
झरनेश्वर महादेव आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इस मंदिर में महादेव का बाल रूप है। यहां झरना बहते रहने से मंदिर का नाम झरनेश्वर रखा गया। प्रदोष और छठ को महादेव के दूधधारा व सहस्त्रधारा की जाती है। पूर्णिमा पर जागरण होता है। झरनेश्वर महादेव सेवा समिति के महेश अग्रवाल के अनुसार झरने से पूरे साल आता पानी कुण्ड में एकत्र होता है। कुण्ड का जलस्तर कम होने के बाद स्वत: ही ऊपर आ जाता है। दिन में जितनी बार महादेव की पूजा होती है। उतनी बार अलग-अलग शृंगार किया जाता है।
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शिवजी के साथ विराजित हैं चारभुजा वाली पार्वती
खाईलैण्ड स्थित राजराजेश्वर महादेव मंदिर मराठा काल का है। यहां नर्बदा नदी के क्षेत्र से प्राकृतिक रूप से विकसित शिवलिंग को मंदिर में विधि-विधान से स्थापित किया। नर्बदेश्वर रूप होने के कारण यहां के चरणामृत का विशेष महत्व है। शिवजी के पास मां पार्वती की चार भुजाओं वाली प्रतिमा स्थापित है। पं. बाबूलाल दाधीच के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में पूजा अर्चना से राजकार्य और रुके हुए कार्यों में आई बाधा दूर होती है। पुराने समय में लोग शासन में अटके कार्यों को पूरा करने के लिए भोलेनाथ के अर्जी लगाते थे। इसलिए राजराजेश्ववर महादेव कहते हैं।