विश्वविद्यालय में 28 साल तक हिंदी विभाग (dept of hindi) ही नहीं था। ना सरकार ना कुलपतियों ने हिंदी विभाग खोलने की पहल की। राजस्थान पत्रिका (rajasthan patrika) ने मुद्दा उठाया तो तत्कालीन राज्यपाल कल्याण सिंह
(kalyan singh) ने तत्काल संज्ञान लिया। उनके निर्देश पर तत्कालीन कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी ने वर्ष 2015 में हिंदी विभाग स्थापित किया। तबसे विभाग पहचान तलाश रहा है।
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खून-पसीने की कमाई के साथ अब सांसें भी दांव पर पढ़ाते हैं उधार के शिक्षक विभाग में चार साल से स्थाई शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई है। उधार के शिक्षक (guest faculty) ही कक्षाएं ले रहे हैं। चार साल में विद्यार्थियों की संख्या 40 भी नहीं पहुंच पाई है। ना सरकार (state govt) ना विश्वविद्यालय (university) ने विभाग में स्थाई प्रोफेसर (professor), रीडर (reader) अथवा लेक्चरर (lecturer) की नियुक्ति करना मुनासिब समझा है। विभाग की तरफ से नियमित राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (conference), कार्यशाला (workshop) नहीं कराई गई है।
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loot in ajmer : बिखरी पड़ी थी एटीएम, पुलिस ने किया सीज …घट रहे हैं प्रवेशविभिन्न कॉलेज में स्नातकोत्तर स्तर पर संचालित हिंदी कोर्स में दाखिले कम
(admission reduce) रहे हैं। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय (spc-gca) जैसे कुछेक संस्थाओं को छोडकऱ अधिकांश में युवाओं का रुझान हिंदी में एमए
( post graduation in hindi) करने की तरफ घट रहा है। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के हाल भी खराब हैं। शिक्षक (techers) , भाषा प्रयोगशाला (langauge lab) और अन्य संसाधन नहीं होने से विद्यार्थियों की प्रवेश में रुचि कम हो रही है।
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समान नागरिक संहिता से सरहदों की सुरक्षा में बदला ‘मिशनÓ फैक्ट फाइल (facts) हिंदी विभाग की स्थापना-2015-16
विभाग में कुल सीट-20, प्रतिवर्ष प्रवेश-5 से 10 के बीच स्थाई शिक्षक-अब तक नहीं हुई नियुक्ति
विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग खोलने का मकसद ही राष्ट्रभाषा को बढ़ावा देना है। केवल हिंदी में पास होने की प्रवृत्ति में बदलाव लाना होगा। विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग को सशक्त बनाने की जरूरत है। प्रो. कैलाश सोडाणी, पूर्व कुलपति मदस विश्वविद्यालय