अजमेर वन मंडल क्षेत्र को सरकार और वन विभाग मुख्यालय ने अब तक ट्रेंकूलाइजर गन (tanquilizer gun) मुहैया नहीं कराई है। जबकि यहां ब्यावर, मसूदा, जवाजा और अजमेर क्षेत्र में पैंथर, जरख, भालू जैसे हिंसक जानवर (wild animals) कई बार नजर आ चुके हैं। बीते वर्ष फरवरी-मार्च में एक बारहसिंगा और हिरण भटकता हुआ शहरी क्षेत्र (urban area) में पहुंच गया था। खासतौर पर हिंसक वन्य जीवों को पकडऩे के लिए ट्रेंकूलाइज गन से बेहोश () करना पड़ता है। लेकिन विभाग को जयपुर (jaipur), कोटा (kota), उदयपुर (udaipur) , जोधपुर (jodhpur) और अन्य जिलों से गन और विशेषज्ञ बुलाने पड़ते हैं।
मंडल में रेंजर,वनपाल और अन्य सुरक्षार्मी लकड़ी के डंडों (wooden stick) से वन क्षेत्र की सुरक्षा करते हैं। पिछली कांग्रेस और भाजपा सरकार के कार्यकाल में अधिकारियों-वनकर्मियों को पिस्तौल (pistol) देने पर विचार हुआ, लेकिन मामला अधर में है। हिंसक वन्य जीवों को पकडऩे के लिए सुरक्षाकर्मियों को लोहे का पिंजरा (iron), जाल अथवा डंडों का सहारा लेना पड़ता है। इसके अलावा वन्य क्षेत्र में बातचीत के लिए मोबाइल (cell phone) ही एकमात्र उपकरण है। यह कई बार टावर रेंज नहीं मिलने से ठप रहते हैं।
पिछली भाजपा सरकार ने महिला और पुरुष वन सुरक्षा गार्ड (securtiy guard) को अद्र्ध सैनिक बलों (police force)की तरह प्रशिक्षण दिलवाया था। इसके तहत अजमेर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के ग्रुप केंद्र द्वितीय में महिला सुरक्षा गार्ड (womens guard) को हथियार और आत्मरक्षा के गुर सिखाए गए। पुरुषों को भी ट्रेनिंग दी गई। दुर्भाग्य से इनमें से कई सुरक्षाकर्मी दफ्तरों में क्लर्क का कामकाज कर रहे हैं। जबकि राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (Chief conservator forest) कई बार पत्र भेजकर इन्हें फील्ड में लगाने के निर्देश दे चुके हैं।