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सीख रहे सोशल डिस्टेंसिंग130 करोड़ आबादी वाले भारत में दुकानों, दफ्तरों, अस्पतालों, कृषि मंडियों में भीड़-कतारें ही देखने को मिलती हैं। कोरोना महामारी ने लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग की सीख दी है। अजमेर में दुकानों, पेट्रोल पंप, सब्जी मंडी और अन्य सामान खरीदते वक्त लोग इसकी पालना करने लगे हैं।
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साबुन-सेनिटाइजर का इस्तेमाल
साबुन और सेनिटाइजर से हाथ साफ करना-धोना लोगों की आदत में शामिल हो चुका है। डेढ़ महीने पहले तक सेनिटाइजर का लोग यदा-कदा इस्तेमाल करते थे। पुलिसकर्मी, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, जेएलएन अस्पताल सहित घरों, दुकानों और आवश्यक सेवा वाले दफ्तरों में सेनिटाइजर का नियमित इस्तेमाल कर रहे हैं।
पहले 95 प्रतिशत लोग मुंह पर मास्क अथवा कपड़ा नहीं बांधते थे। जबकि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, जयपुर सहित कई शहरों में प्रदूषण के हालात भयावह थे। अब प्रत्येक व्यक्ति मास्क-रुमाल लगाकर निकल रहा है।
क्वरेंटाइन शब्द इटली के क्वारेंटीना से बना है। यह किसी बीमार को 15 से 40 दिन की अवधि के लिए दूसरों से अलग करने के लिए होता है। कोरोना संक्रमित और संदिग्धों को इन दिनों अस्पताल अथवा घरों क्वारेंटाइन किया जा रहा है। लोगों को क्वारेंटाइन की अहमियत भी समझ आ रही है।
कोरोना वैश्विक महामारी है। भारत सहित कई देशों में लॉकडाउन है। इससे लोगों में स्वच्छता, सोशल डिस्टेंसिंग के प्रति जागरुकता बढऩा अच्छी बात है।
प्रो. अरविंद पारीक, बॉटनी विभागाध्यक्ष, मदस विश्वविद्यालय